भक्त - सुमन | Bhakt Suman

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Bhakt Suman by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्त विसोचा सराफ़ भगवानकी ही भाँति भक्तोंका गुणचिन्तन भी जन्म-जन्मके कल्मषकोः मिटाकर चिर्ञान्ति और शाख़्त आनन्दका दाता है | और इसी अर्थमें श्रीआयशझूराचार्यने 'मोहमुद्रर'में कहा है कि सजनोंका एक क्षणका भी सङ्ग संसार-सागरको पार केके लिये सुदृढ़ नौका है) संतोका सङ्ग दोनों दी प्रकारसे हता है-उनकी सन्निधिम रहनेसे ओर उनके गुण-स्मरणसे भी | भक्तिपुरी पण्डरपुर और प्रसं श्रीपण्डरीनायसे हेम समी परिचित हैं | वहाँसे पचास कोसके अन्तरपर औंढ़िया नागनाथ एक. अत्यन्त प्राचीन शिवक्षेत्र है| यह बहत ही जागता इभा स्थान है ओर भगवान्‌ शङ्करके द्वादश ज्योतिर्मे एक दै । विसोवा यहाँके रहनेवाले थे | ये जातिके तो थे यजुबेंदी ब्राह्मण, परल्तु काम करते थे सराफ़ीका | इसलिये ये बिसोवा सराफ़के ही नामसे ्रष्यात इए ! घरमें एक सती साध्वी धर्मप्नी और चार लड़के थे | जीवन वडा ही सादा ओर सेवा-परायण धा तथा सब-के-सवः साधुसेवी थे | व्यवसायमें रहते हुए भी विसोबाका चित्त निरन्तरं भगवानमें ही बसता था। वे एक आदर्श गृहस्थ थे और गृहस्थ- धर्मका मुख्य अत अतिथि-सेवा उन्हें प्राणोंसे भी प्यारा था। पत्नी भी इतनी अठुकूछ और बचे इतने - आज्ञाकारी कि यदि भोजन बन चुकनेपर कोई संत-महात्मा या अम्यागत आ जाता तो उनमें होड़-सी छग जाती कि मैं भूखा रहूँगा-मेरा दी भोजन अभ्यागतको ' दिया जाय | इस दोडा-होडीम विसोबाको वडा घुख मिता था । और यह नहीं कि भोजन देकर ही विसोबाको सन्तोष हो जाय, वे अम्यागतको साक्षात्‌ नारायण समझकर उसकी सवर प्रकारसे




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