निर्भयविलास अर्थात् गीतगोविन्द प्रथम भाग | Nirbhay Vilas Arthat Geetgovind Bhag 1

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Book Image : निर्भयविलास अर्थात् गीतगोविन्द प्रथम भाग  - Nirbhay Vilas Arthat Geetgovind Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= শীনশীবিন্য। (३७) | | करना था चित्त नहीं घरतां है॥ संतनकी माने नहीं ग्रेथनको | जाने नहीं अज्ञानी अमिमानी कामी अंतको न । है। परमारथ कर हीन नि्भय स्वारथमें प्रवीन केसा खालकी | खलीतीमें मवाशी बना फिरता है ॥ 0 कोई कता है जप तप दान करो, कोर तीरथ बरत सुकृति | बतावे। कोई कहता है विद्या पढे अघ दूर दोषस्य कोई मक्ती || ही हृढावे ॥ वेराग्य विविक दिखात कोई बलिवेश्य कोई हठ | जोग करावे। तू सचिदानंद है ब्ह्महप ये निर्भेय ज्ञान | कोई न सुनावे ॥ | ৬ [1 ॥ कवित्त ॥ | „ धून संपति पाये. कहा खत वनितादि चाहे कहा मित्रन || रिश्लाये कहा उत्तमकुल जायेंतें। बागह लगाये कृहा. महलचिन- वाये कहा चवर डुलवाये कहा छत्रहू घरायेते॥सेना बढायेकहा | शख्रमंगवाये कहा बलमें धुलाये कहा ऊधम उठायेंतें। तनको मे- | जायेकहा स्तुतिकरायेकहा भांड बुलवायेकहा अप्सरा नचायेंतें। ॥ भृषण गड़ाये कहा हस्ती बंधाये कहा नौबृत झडाये कहा कीर्ति ॥ फेलायेते। नानारस्‌ खये कदा वघ्लनसजाये कहा सुगन्धीबसये ||. कहा पानके चबायेंतें ॥ रागह गाये कहा साजह বসান কা | गुणी कृहलाये कहा जोबन द्खिलायेंते। किमिया बनाये कहा ॥' देशन मेँझारे कहा वेद्य बन पुजाय कहा रत्त परखायेंते ॥॥ शिरह्‌ मुडाये कहा केशह रखाये कहा तिलकहू चढाये कहा | भस्मी रमायेंतें। बनी অন্‌ ভার कहा ग्रफार्म, समाये कहा ॥ आसन जमायें कहा देहको संखायेंतें॥ कानहू फड़ाये_ कहा |. चीरको रंगाये कहा पन्‍्थहू चलाये कहा साधू -कहलायेंतें। | मौन इठ खये कदी भाखं झपकाये कहा कमण्डलु हथियाये |: कहा दण्डहू दबायेतें॥ कंपेट मनं मानां है सत्थ নিলা ই] न




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