निर्भयविलास अर्थात् गीतगोविन्द प्रथम भाग | Nirbhay Vilas Arthat Geetgovind Bhag 1
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= শীনশীবিন্য। (३७)
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| करना था चित्त नहीं घरतां है॥ संतनकी माने नहीं ग्रेथनको |
जाने नहीं अज्ञानी अमिमानी कामी अंतको न ।
है। परमारथ कर हीन नि्भय स्वारथमें प्रवीन केसा खालकी |
खलीतीमें मवाशी बना फिरता है ॥ 0
कोई कता है जप तप दान करो, कोर तीरथ बरत सुकृति |
बतावे। कोई कहता है विद्या पढे अघ दूर दोषस्य कोई मक्ती ||
ही हृढावे ॥ वेराग्य विविक दिखात कोई बलिवेश्य कोई हठ |
जोग करावे। तू सचिदानंद है ब्ह्महप ये निर्भेय ज्ञान |
कोई न सुनावे ॥ |
৬
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॥ कवित्त ॥ |
„ धून संपति पाये. कहा खत वनितादि चाहे कहा मित्रन ||
रिश्लाये कहा उत्तमकुल जायेंतें। बागह लगाये कृहा. महलचिन-
वाये कहा चवर डुलवाये कहा छत्रहू घरायेते॥सेना बढायेकहा |
शख्रमंगवाये कहा बलमें धुलाये कहा ऊधम उठायेंतें। तनको मे- |
जायेकहा स्तुतिकरायेकहा भांड बुलवायेकहा अप्सरा नचायेंतें। ॥
भृषण गड़ाये कहा हस्ती बंधाये कहा नौबृत झडाये कहा कीर्ति ॥
फेलायेते। नानारस् खये कदा वघ्लनसजाये कहा सुगन्धीबसये ||.
कहा पानके चबायेंतें ॥ रागह गाये कहा साजह বসান কা |
गुणी कृहलाये कहा जोबन द्खिलायेंते। किमिया बनाये कहा ॥'
देशन मेँझारे कहा वेद्य बन पुजाय कहा रत्त परखायेंते ॥॥
शिरह् मुडाये कहा केशह रखाये कहा तिलकहू चढाये कहा |
भस्मी रमायेंतें। बनी অন্ ভার कहा ग्रफार्म, समाये कहा ॥
आसन जमायें कहा देहको संखायेंतें॥ कानहू फड़ाये_ कहा |.
चीरको रंगाये कहा पन््थहू चलाये कहा साधू -कहलायेंतें। |
मौन इठ खये कदी भाखं झपकाये कहा कमण्डलु हथियाये |:
कहा दण्डहू दबायेतें॥ कंपेट मनं मानां है सत्थ নিলা ই]
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