विदुरनीति: | Vidurniti
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऽध्यायः ] * णजलक्ष्मी भाषा-टीकाचिराजितां # १७
( अन्धे } दं अत्तः आपका भविभ्य विपरीत दिखाई देता दे । अर्थात् कुछ दी दिनों
मे आप इस राज्य से छ्टाथ भोवेगें । ओर युघिष्ठिर द्वी राज्य पावेगा। [अथवा आप
चमात्मा पोते हुए भी राजलक्षणों से शून्य हें एवं नेत्रदीन हे জন: আদ হত
राज्य के योग्य नहीं हैं ]॥ १७ ॥
आनरशंस्पादनुक्रोशाद्धमौत्सत्पात्पराक्रमात् | `
गुरुत्वात्चयि सम्परेश्य वहन् शां स्तितिक्तते ॥ १८ ॥
[ अन्वयः ] युधिष्टि:---आइशंस्थात् अनुक्रोशात् धर्मात् सत्यात्
पराक्रमात् लबि गुच्त्वात् [ নন ] संप्रेश्वा 5पि चहुन् क्लेशान तितिक्षतें ॥
[ विप्रहः ] न रुशंसः-अच्शसः, तस्य भावः आइशंस्य, तस्मातू---
आद्धश्तस्यात् 1 ग॒रोमोवो गुरव, तस्मात्-गु्त्वात् ¦
[ भरथः ] युचिषठिरः--माश्ंस्यात्-भन्ूरत्वात् । शखडुख-
भावत्वात् । अदुक्रोशात्=द्याद्धुत्वात्। धमाधम चीक्ष्य ।
धार्मिकत्वादिति यावत्। सत्यात-सत्याजुरोधात् | सत्यमाश्रि-
त्येति चा। व्यव्छोपे पश्चमी । पराक्रमाव-पराक्रमशीलत्वात् 1
चैयांदिति वा । पराक्रममास्थायेति चा । त्वयिन्मवति ' गुस-
त्वातू-पूज्यचुध्था च । सम्प्रेकष्य-्विचार्य । चहन-तानाविधान
वहन्. 1 छ श्णन=कटान् 1 तितिश्छते=सदते ।
[ जापाटीका ] जीर बह चुधिष्ठि परल व दान्त होने से, प्वं दयाद्ध
धर्मासा सत्यप्रिय व पराक्रमी ्टोने से तथा भाप में शुरुभाव रखने के कारण
जानवूझ कर भी नाना प्रकार के कष्ट सदन कर रद्दा दे ॥ १८ ॥
इर्थोधने सोवले च कर्ण इःरासने तथा ।
पतेष्वैश्वयेलाधाय कर्थं स्वं भूतिमिच्छसि १॥ १
[ अन्वयः ] दुर्योधने सौधले च कणं तथा दुःशाने--एतेपु ेदव-
र्यम् आधाय कथं स्वं भूतिम् इच्छसि ? |
[ विघ्रह: } ईरवरस्य भावः~देशवर्थम् । तत्. । दुःखेन श्रास्यते इति
दुध्शासनः, तस्मिन् दुःशासने ।
[ मर्थः ] दुर्योयनेदुयोधननाम्नि स्वात्मजे । सौव च~
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