कवित्त रामायण | Kavitt Ramayana
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामगुलामजी द्विवेदी - Ramgulamji Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(এ )
वसंत मुनि वेष किये, इन्हें लखि अस्विनीकुसार
लगे फोके हैं । रूपमुधा शगर उजागर अराल
লব, সাত गुलासरास संडन महो के हें ॥२२॥
खावरे गोरे कै बीच नारि झुकुसारि सेहे,
सुखमा सकेलि बिधि विरचो बनादरकै। रस्था
रतौ संज्ञा सची रोहिनी भवानौ रसा, उपमा
विचारे कवि रहते लजाई कै ॥ जोग सिद्धि जौ-
गिन्ह की संयति दिगीसन्ह की. ईसन्ह की
ईसता रही ते कही गाद कै ¦ याही कै विलास
का विकास विलसत विश्व, वापुरों गुलासरास
कहे क्यों काद कै ॥२३१
कानन कथा के सनै जवे লন खोस धुन,
हेरे नरनारि ते लखन रामजानकी । दैवहि लगाई
` दोष बचन करैः सराष कैकर्द कठोर हाय कुलिस
पषान की ॥ बालक पठाये रेसे जिथैगो नरेस केसे
पुर परिवार के। न हेंहे सुधि ग्राम की । बदत
गुलामराम जौधै वनवास रास, विधि बलवान
तो बसाइ कहा श्रान की ॥२४॥
सखी गोरे साँवरे सिधाये रहि पंथ जे वे,
तैसे तेई कहा कहें। म्रानन के सौत री । सिर
जटठजूठघारी कटिन्ह निषंगधारी, कर सर चाप
संज्ञा -- सूय्ये की पत्नी | रोहिनी -चन्द्रमाकीखी।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...