घट रामायण [भाग १ ] | Ghat Ramayan [ Part 1]

Ghat Ramayan [ Part 1] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(02 ` भेद पिंड और चरक्मांड का . ॥ दोहा ॥ सतगुरु संत; दयार, करि निहा मेः का दिये। . -सूरत्ति संध सधार, सार पार उद ভাফি प्खो॥ ॥ सेरा ॥ .. संत चरन. पट्‌ धरर, मूर मरमम का दह । भं निरति खत सुर, खड्‌ समान मन चर करि॥१। .म..मत्ति मान. अपर, छर कुटिल. न्यारे श्यै । हये ` तिमर तन दर तूर तमक तन. की महं ॥२॥ मे मन सुरति अथान, जानि सुरति सत रीति ठे! गहि कर संत सुजान, मान मनी मद्‌ ভাঁতি হই ॥ই॥ मे मति संतत सम नाहि, पाड पकरि रारे लड । ` सतर दीनदयाल, जार काट न्थारी करी ॥४॥ सतगर्‌ चरन निवास, {चिमठ नास विधि खि परी ` ` धरी जा तुलसीदास, भास चमक्कि चढ़ि चॉप घरि ॥४॥ “सतगरू परम उदार; दल दरिद्र सब दरि करि। संपति सुरति विचार, निधि निहार सब्दे लंखा॥६॥ - . ॥ चापाई॥ परथम बन्दों सतगरुरवामी। तुलसी चरत सरनि रति मानी ॥ पनि . वन्दं संतन सरना । जिन पनि सुरत निरत द्रसाह ॥ चरन सरन संतन बलिहारी । सुरति दीन्ही ठ्खन सिहारी ॥ सरन सूर सुरति समभ्ादर\ सतगुरु मूर मरम लख पाई ॥ मे मतिहीन दीन दिल दीन्हा! संत सरन सतगुरु के चीना ॥ सतगरु अगम सिंध सखद्‌ाइे1 जिन रतत. राह रीति द्रसाहं ॥ पनिपनि चरन कवल सिर नास) दीन हह `संतन गात माऊ॥ दीनजानिदीन्हीमेहिर्जाखी। मे पनि चरतं सरन गहि भाखो-॥




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