अभिनव शवच्छेद विज्ञान [द्वितीय भाग] | Abhinav Shavchchhed Vigyan [Part 2]
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिर ओर ग्रीवा १३
छेदनों के शिरों को धिछाने के लिये पाश्वों पर होकर चाकू की धार
से दोनों ओर गहरा छेदन कीजिये। इन्हीं छेदनों के सहारे अस्थियों
के बाह्यस्तर को आदी से काटिये । अस्थि के बाह्य स्तर कट जाने पर
आरी रिक्त स्थान होने से हल्की चलने लगती है। अन्तःर्तर को
छेनी ( 00४8० ) तथा हथोड़े से तोड़िये। ऐसा करने से मस्तिष्का-
वरणों पर आधात नहीं पहुँचता । जब करोटि-टोपी ऐसा करने पर
ढीछी हो जाती हे तो छेवी का एक शिरा कटी धारा में सामने प्रवेद्य
करके बलपुबंक करोटि-टोपी को पीछे की ओर खींचकर पृथक कर
दिया जाता है। वराशिका या मध्तिष्क बहिवृ त्ति का बाह्य पृष्ठ दृष्टि-
गोचर हो जाता है।
वराशिका के प्रवर्धित भाग तथा शिरासरित श्नौर मस्तिष्क
ताड़ियों का बहिगंमन प[इवे हृश्य
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ै. दात्रिका ( 995 09600)
5, लघुदात्रिका ( 7815 ए४/'००७॥ )
0. অনলিক্কা (11650007152 ए००४79 )
7), জহাঁতাহিশ হালা (00180989111 715070010 )
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ঘা জন্তু নুল্নন (17920562007 10606102156026 )
, उत्तरा दधिका शिराक्ुल्या ( 3 प्6107 99816691. 92089 )
, अधरा दीर्धिंका सिर कुल्या ( 1167107 8281178] अंपाऽ )
„ दीं मस्तिष्काभिगा शिया ( ७८2४ कलास् रलं )
, दीर्धिका योजनी ( 8९1६४ 817४8 )
„ शिरासरित् सभ्मेटन (00001560099 019105595 )
„ मर्तिष्क-मातूका धमनी ( ४९८०४ 4 एच )
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> € ५ ৩৩ ১৩ ~
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