राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची [भाग ३] | Rajasthan Ke Jain Shastra Bhandaron Ki Granth Suchi [Part 3]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, नियमावली / Manual
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१, अचलकीर्ति
अचलकीत्ति १८ वीं शताब्दी के हिन्दी कवि थे । विषापहार स्तोत्र भाषा इनकी प्रसिद्ध रचना हं
जिसकी समाज से अच्छा प्रचार है | अभी जयपुर के वधीचन्दजी के मन्दिर के शाख मण्डार मे कमे-
वत्तीसी नास की एक और रचना प्राप्त हुई है जो संवत् १८७० में पूणं हई थी । इन्दँने कमेवत्तीसी
पावा नगरी एव बीर संघ का उल्लेख किया है । इनकी एक रचना रवित्रतकथा देहली के भण्डार मे
संग्रहीत है |
२, अजयराज
श्प्वीं शताब्दी के जैन साहित्य सेवियों मे अजयराज पाटणी का नाम उल्लेखनीय है! ये
खण्डेलवाल जाति मे उत्पन्न हुये थे तथा पाटणी इनका सोत्र था। पाटणीजी आमेर के रहने वाले
तथा धामिक प्रकृति के प्राणी थे | ये हिन्दी एवं संस्कृत के अच्छे जाता थे । इन्होंने हिन्दी में कितनी ही
रचनायें लिखी थी | अब तक छोटी और वडी २० रचनाओं का तो पता लग चुका है! इनमे से आदि
पुराण भाषा, नेम्तितायचरित्र, यशोधरचरित्र, चरखा चडपई, शिव रमणी का विवाह, कक्कावत्तीसी
आदि प्रमुख हैं । इन्होंने कितनी ही पूजायें भी लिखी हे । इनके द्वारा लिखे हुये हिन्दी पद भी पर्याप्त सख्या
से मिलते हैं । कवि ने हिन्दी से एक जिनजी की रसोई लिखी हे जिसमे पट रस व्यंजन का अच्छा লাল
करिया गया है ।
अजयराज हिन्दी साहित्य के अच्छे विद्वान थे। इनकी रचनाओं मे काव्य क दशन होते है ।
इन्होंने आदिपुराण की सबत् १७६७, में यशोंधरचोपई को १७६२ में तथा नेमिनाथचरित्र को सबत् १७६९३
से समाप्त किया था ।
३. ब्रक्न अजित
प्रह्म अजित संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान् थे | हनुमच्चरित मे इनकी साहित्य निर्माण की
कला स्पष्ट रुप से देखी जा संकती है । ये गोल गार चग मे उत्पन्न हुये थे । माता का नाम पीथा तथा
पिता का नाम वीरसिंह था । भृुकच्छपुर में नेमिनाथ के जिन मन्दिर मे इनका मुख्य रूप से निवास था}
ये भद्रक सुरेन्द्रकीति के प्रशिष्य एबं विद्यानन्दि के शिष्य थे ।
हिन्दी में इन्होंने हंसा भावना नामक एक छोटी सी आध्यात्मिक रचना लिखी थी। रचना मे
२७ पद्य ह जिनमे संसार का स्वरूप तथा मानव का वास्तविक कर्तव्य क्या है, उसे क्या करना चाहिये
तथा किसे छोडना चाहिये आदि पर प्रकाश डाला है । हंसा भावना अच्छी रचना है, तथा भाषा एवं
शैली दोनों ही दृष्टियों से पंढने योग्य है | कवि ने इसे अपने शुरु विद्यानन्दि के उपदेश से बनायी थी ।
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