समयसार कलश प्रवचन | Samaysar Kalash Pravachan

Samaysar Kalash Pravachan by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२८४ १९८५ १२८६ १२५७ १९८८ १२८६ १२६० १२६१ १२६२ १२६३ १२६४ १२६५ १२६६ १२६७ १९६०५ १२६६ १३०० १३०१ १३०२ १३०३ १३०४ १३०५ १३०६ १३०७ १२० १३०६ १३१५ १३११ १३१२ १३१३ १२३१४ १७ समयसार कलश प्रवचन चतुथं भाग (बन्धाधिकार) विषय पुष्ठ-सख्या बन्धको घुनते हुए निरुषाधि ज्ञानका उपयोगभूमिमें प्रवेश २५१ रागोंद्गारमहारससे वन्ध द्वारा जगतूकी विडम्बना २५१ ज्ञानवासित वैराश्युक्तं जीवनकी धन्यता २५१ वधकी भ्रज्ञानियोपर मार और ज्ञानियोकी দ্র मार २४२ भ्रविकोर स्वरूपपर विकार लदनेकौ विडम्बना २५३ प्रध्यात्मशास्त्रमे बुद्धि त पौरप एवं कार्यका वर्णन २५३ प्रानद्धकों उमगाता हुआ ही शुद्ध ज्ञानके श्रम्युदयकी विलास २५३ ग्रन्थं विभावको छोडकर चैतन्य महाप्रभुके दर्शनकी कलासे भ्रपनेको श्रात्माभिमुख वनानेका सदेश २५४ निज सहज स्वरूपफे दंशं नके दृ त्रम्यासीको सवत्र चैतन्य महाप्रमुके दर्शन २५४ निरपापि ज्ञानका सहज विलांस २५५ धीर उदारं प्रनाकुल निरुपाधि ज्ञानको प्रताप २५५ वन्धुक सम्बन्धमे विचार २५६ वन्धप्रसगके समयकी कु वाह्‌ र धटनाश्रोका चित्रण २५६ कर्मवहुल जगतका वन्घहेतुता« भनियम २५७ चलनात्मक कर्मका वघहेतुतामे अ्तियम २५७ अनेक करण साधनोका वन्धहेतुतामे भ्रनियम २५७ चिदचिव्दंधका बन्धहेतुपनेसे श्रनियम २५८ बन्धहेतुतापर यथार्थ प्रकाश २५८ वन्बहेतुताके तथ्यका सकेतक एक दृष्टान्त २५६ वन्धहेतुविदारणका स्वाधीन सुगम उपाय २५६ अनुभावानुकूल उपयोगका व्यापार २६० ज्ञानीके सवत्र मिथ्यात्व वे श्रनतानुबधीकूत वन्चका अभाव २६० सल सकटोका मूल रागद्वेष मोह २६१ परपदार्थ प्रसगोके वन्घहेतुत्वके प्रतिपादनका समर्थन २६२ विकारोको उपयोगभमिमे न ले जाते हुएके कमंवन्धका प्रभाव २६२ कमं वगेणापूरित लोकम तथा चलनात्मकं कर्मे कमवन्धहेतुत्वका श्रषटन २६२ परनेक करणौमे कर्मवन्यटैतुप्वका সমতল २६३ व्यापादनमे कमे वधृहेतुत्वका ब्रघटन २६४ स्याद्रादविमुंखताके कारण द्रव्य-दुब्टिके दर्शनकी एकान्तमतना २६५४ स्यादरादविमुलताके कारण परयायदृष्टिके द्ंनकी एकानमतता २६५ आत्महितोपयोगी शासनकी उपलब्धिका सदुपयोग करनेकी प्रेरणा २६५




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