जैन-आचार्य चरितावली | Jain Acharya Charitawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्राचार्य चरितावलो € विनय सहित शिक्षा ले गुरु से, निज स्वरूप पहचावा है 11५॥ श्रथ :--गुरु के सदुपदेश से दीक्षित होकर मतक मुनि ने जन्म सफल करने का निश्चय किया । उसने गुरु से सविनय शिक्षा प्राप्त की और अपने शुद्ध स्वरूप को पहचान लिया ॥५॥॥ गुरू का उपदेश-- 1 तर्ज ख्याल ॥॥ गुरुदेव बतावे, साधन समकावे मुक्तिसामं का पगुर०\ टर) জালা पीना श्रौर धमना, यतना से सव काम) विधियुत चलते पाप न लागे, मिले सुक्ति का धाम हो ॥गुरु०॥१॥॥ सनक कहे गुरुदेव बताओ, सब शास्त्रो का सार। अल्प श्रायु कख शय्यंभ्वने, किया शास्त्र उद्धार हो ।1गुर₹०।।२1 दश श्रध्याय पूर्ण से लेकर, रचना की तेयार । काल विकाल में पूरा किया यो, दशनेकालिक धार हो ॥गुरु०॥३॥। श्रथ --मनक मुनि को शिक्षा देते हुए गुरु बोले, शिष्य ! पाप कर्मं से बचने के लिय्रे आवश्यक है कि खाना, पीना, घुूसना, सोना और भाषण आदि सव कास यतना से किये जाये, जिससे आत्मा हल्की होकर मुक्तिमार्ग की ओर अग्रसर हो सके 11१1) मनक वोले, गुरुदेव ! मुझे ऐसा मार्ग वत्तलाओो कि मै अल्प समय मे ही अपना कल्याण कर सकु । गुरुदेव जयूबभव ने उसके आयुकाल का विचार किया तो मात्र छ महिने का ही आयु शेप पाया । इतने अल्पकाल मे मनक सुनि ज्ञांस-क्रिया का सम्यक्‌ आराघन कर किस प्रकार अपना




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