रेवातट | Revatat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
इनके ऐतिहासिक सिद्ध करने वाले तत्वों द्वारा दिये गये प्रमाणों के
अभाव में लिखित साहित्य से ही नहीं वरन् लौकिक साहित्य के आधार तक
से भी इतिहास का कलेवर भरा जाता दै । रासो श्रपने एेतिद्यों का मूल्यांकन
करने के लिये फिर उनसे माँग कर रहा है और यदि उन्होंने पत्णात को न
अपनाया तो कल्हण की “राज तरंगिणी” सदृश रासो भी उन्हीं के द्वारा एक
अपवाद मान लिया जायगा |
मुनिराज जिनविजय की रासो की वार्ता संबंधी चार अपभ्र श छुंदों की
शोध ने जहाँ एक ओर डॉ० दशरथ शर्मा को “राजस्थान भारती” में प्रकाशित
अपने कई लेखों में यह दिखाने के लिये प्रेरित किया कि अपभ्रंश और
प्राचीन राजस्थानी में अति अल्प अंतर है तथा मूल रूप में उत्तर-कालीन-
अपभ्रंश रचित ध्पृभ्वीराज-रासोः का विकृत रूप ना० प्र० स वाला प्रकाशित
रासो है वहाँ दूसरी ओर मोतीलाल मेनारिया ने (राजस्थान का पिंगल
साहित्य, सन् १६५२ ३०; ০ ३७-३८ में ) लिखा-“जिस प्राचीन प्रति में ये
छप्पय मिलें हैं वह सं० १५२८ की लिखी हुई है | इससे मालूम पढ़ता है कि
चंद नामक कोई कवि प्राचीन समय में, कम से कम सं० १५२८ से पहले
हुआ अवश्य है | परंतु वह चंद कक्-हुआ, कहाँ हुआ, वह किस जाति का
था, उसने क्या लिखा इत्यादि बातों का कुछ पता नहीं है। अत; उस चंद का
अधुना प्रचलित प्रथ्वीराज रासो से सम्बन्ध जोड़ना अनुचित है | क्योंकि इसकी
भाषा स्पष्ट बतलाती है कि यह विक्रम की १८ वीं शताब्दी से पूर्व की रचना
नहीं है ।” परन्तु 'ृथ्वीराज-प्रवंध? में चंद का नाम मात्र ही नहीं है बरन् उसकी
भद्ध जाति का भी उल्लेख है. तथा प्रथ्वीराज के गोरी से अंतिम युद्ध में उसके
एक शुफा में बंदी होने का भी वर्णन है। इसके अतिरिक्त पथ्वीराज और
जयचन्द्र का बैर, पृथ्वीराज का अपने मंत्री कइंबास (केमास) दाहिम को बाण
से मारना ओर बंदी होने पर सुलतान के ऊपर बाण चलाना भी वर्णित है।
ये सभी बातें प्रकाशित रासो मं वतमान ह तथा इन प्रबंधों के तीन छुप्पय भी
उसमें विकृत रूप में पाये जाते हैं। 'जबचंद्र प्रवंध” में आये दो. छप्पय चंद के
नदौ वरन् उसके पुत्र 'जल्हुक४? (जल्ह कवि) के हैं जो रासो के अनुसार चंद
का सबसे श्रेष्ठ पुत्र था और जिसे (पुस्तक जल्टन हस्तं दै चलि गज्जन नुप
काज) रासो की ( पुस्तक समर्पित करके कवि प्रथ्वीराज के काय हेतु. ग़ज़नी
गया था | इतने प्रमाणों की उपेक्षा केसे की जा सकती है ? जहाँ तक भाषा
का प्रश्न है यह किसी रासो प्रेमी से नहीं छिपा कि उसका एक बढ़ा अंश एक
विशेष प्रकार की प्राचीन हिंदी भाषा में है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...