अष्ट छाप | Ashtchap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथ सूरदास जी गऊ॒घाट ऊपर रहते तिनकी वार्ता... ६
से। सुनि के देशाधिपति बहुत प्रसन्ष भया और कहो जो
सूरदास जी मोकों परमेश्वर^ ने राज दीनों है से सब गुनीजन
मेरो जस गावत है ताते मेरो जस कदू गावौ ! तव सूरदास
जी ने यह् पद् गायौ । से पद } राग केदासै । ५नाहिन र्यौ मनमें
लोर ।” यह् पद् संपूणं करि के सूरदास जी ने गयौ । सो सुनि
के देशाधिपति अकबर वदेशाह२ अपने मन में विचारथों जो थे
मेरौ जस कहे को गावेंगे जे इनके कछू मेरी बात के लालच होय
तौ गाबै ये तो परमेश्वर के जन हैं। और सूरदास जी ते ( ने ) या
पद के समाप्त में गाये। “हो जो सूर ऐसें दर्श के इमरत* लोचन
प्यास ¦ ” यह गाया है। देशाधिपति ने पूछा जो सूरदास जी
तुम्हारे लोचन तो देखियत नाहीं से! प्यासे केसे मरत हैं और
विन देखें तुम उपमा के देत है से तुम्र केसें देत है।। तब
सूरदास जी कछ बोले नाहीं। तब फेरि देशाधिपति बोला जो
इनके लोचन हैं से। ते परमेश्वर के पास हैं से उहाँ देखत हैं से
वणन करत है । तव देशाधिपति नें सूरदास जी के समाधान
की मन में विचारी जो इनके कछु दीये चाहिये परि यह ते
भगवदीय है इनकों कछू काहू बात की इच्छा नाहीं। पाछें सूरदास
जी देशाधिपति से विदा होयकें श्रीनाथ ज़ी द्वार आये।
प्रसंग ४
एक समय* सूरदास जी मागं में चले जाते ইং বানা
१ पनमेश्वर। २ पात्तसाद | ३ ए मरत। ४ समें । ५ जात है} ६ काऊ।
पण 31०-र्
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