तिरंगे कफ़न | Tirange Khapan

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Tirange Khapan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ललिता--फैसे चले आये अचानक १, शिरीष--अ्रचानक तो नहीं, माँ मे चुला भेजा | माँ पास दी, সই थीं । ललिता ने उनकी ओर देखा और हलके से मुसकराकर कहा--ओः, और अपने कमरे में चली गयी | रिरीष श्रौर ललिता जव वात करने के लिए कमरे से पशं पर साथ- साथ वरैठे, तो शिरीप का दिल जोरों से घड़क रहा था। ललिता के दिल की धड़कन सुन सके, इससे अधिक दूरी पर वह ब्रैठा था, ओर ललिता - का चेहरा विल्नकुल आवेगशूत्य था। शिरीप को तो उस क्षण वह शीतल ओर कुछ कठोर-सी भी लगी--उससें जैसे हिम का कुछ अंश हो । मन- स्विता की एक परिष्कृत छुवि-सी वह बेठी थी, भक्त सफेद थिना किनारे की खादी की साड़ी और सफेद ब्लाउज छोड़कर उसके शरीर पर और कुछ न था, निरामरण । शिरीप--मुझे घर पर पाकर आपको वडा आश्चर्य हुआ ? ललिता--नहीं, आश्चर्य किस बात का १ मगर माँ को सुझसे कहना चाहिए था कि उन्होंने आपको बुलाया है । शिरीप---में अपना भविष्य स्थिर करने आया हूँ........ लल्िता--नहीं, यह तो न कहें, बह अकेले आपका भविष्य नहीं हे । दिरीप--बही सही........सगर आपने ऐसा निश्चय क्यो किया दै १ ललिता--क्योंकि वही मुझे ठीक जान पढ़ता है | शिरीप--ठीक और बेठीक की मीमांसा क्या इतनी सरल होती है १ ललिता--मुझे तो वह कुछ बहुत कठिन नहीं लगती | शिरीप--तव आपको कोई बलिदान कठिन न लगता होगा । लाॉलता--बंलदान यांदे अकारणु न हो तो उसके बारे सें निश्चय कर -न्लेना सरल होता है । ৭ „ 9!




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