तिरंगे कफ़न | Tirange Khapan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ललिता--फैसे चले आये अचानक १,
शिरीष--अ्रचानक तो नहीं, माँ मे चुला भेजा |
माँ पास दी, সই थीं ।
ललिता ने उनकी ओर देखा और हलके से मुसकराकर कहा--ओः,
और अपने कमरे में चली गयी |
रिरीष श्रौर ललिता जव वात करने के लिए कमरे से पशं पर साथ-
साथ वरैठे, तो शिरीप का दिल जोरों से घड़क रहा था। ललिता के दिल
की धड़कन सुन सके, इससे अधिक दूरी पर वह ब्रैठा था, ओर ललिता -
का चेहरा विल्नकुल आवेगशूत्य था। शिरीप को तो उस क्षण वह शीतल
ओर कुछ कठोर-सी भी लगी--उससें जैसे हिम का कुछ अंश हो । मन-
स्विता की एक परिष्कृत छुवि-सी वह बेठी थी, भक्त सफेद थिना किनारे की
खादी की साड़ी और सफेद ब्लाउज छोड़कर उसके शरीर पर और कुछ न
था, निरामरण ।
शिरीप--मुझे घर पर पाकर आपको वडा आश्चर्य हुआ ?
ललिता--नहीं, आश्चर्य किस बात का १ मगर माँ को सुझसे कहना
चाहिए था कि उन्होंने आपको बुलाया है ।
शिरीप---में अपना भविष्य स्थिर करने आया हूँ........
लल्िता--नहीं, यह तो न कहें, बह अकेले आपका भविष्य नहीं हे ।
दिरीप--बही सही........सगर आपने ऐसा निश्चय क्यो किया दै १
ललिता--क्योंकि वही मुझे ठीक जान पढ़ता है |
शिरीप--ठीक और बेठीक की मीमांसा क्या इतनी सरल होती है १
ललिता--मुझे तो वह कुछ बहुत कठिन नहीं लगती |
शिरीप--तव आपको कोई बलिदान कठिन न लगता होगा ।
लाॉलता--बंलदान यांदे अकारणु न हो तो उसके बारे सें निश्चय कर
-न्लेना सरल होता है ।
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