मानसरोवर | Mansarowar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुछुम १७
मेरे स्वामी की प्रेमिका हो, मुझे अपने चरणो में शरण दो । मै तुम्हारे लिए:
फूलों की सेज विछाऊँगो, त॒म्दारी माँग मोतियों से मरूँगी, तुम्हारी एड़ियो में
महावर रचाऊगी--यही मेरे जीवन की साधना होगी | यह न सममना कि में
जलूँगी या कुट्ढें गी । जलन तव होती दे, जब कोई मुझसे मेरी वस्तु छीन रहा
हो | जिस वस्तु को अपना समझने का मुमे कभी सोमाग्य न हुआ, उसके
लिए, मुके जलन क्यों हो !
श्रमी वदत कु लिखना था; लेकिन डाक्टर साइव आ गये हं । वेचारा
हुदय-दाह को ष्टी° वी°' समक रदा ह ।
दुःख की सतायी हुई,
-कुछुम
इन दोनो पन्ना ने मेरे बैये का प्याला भर दिया । में वहुत दी आवेशहीन
आदमी हूँ । भावुकता मुझे छू भी नहीं गयी । अधिकाश कलाविदों की भोंति
में भी शब्दों में आत्दोलित नही होता । क्या वस्तु दिल से निकलती ई, क्या
' बस्तु फेवल मर्म को स्पर्श करने के लिए. लिखी गई है यह भेद वहुधा मेरे
চি
साहित्यिक आनन्द में वाधक हो जाता है; लेकिन इन पत्रों ने मुफे आपे से वाहर
कर दिया | एक स्थान पर तो सचमुच मेरी आँखें भर आयी । यह मावना कितनी
वेदनापूर्ण थी कि वही वालिका, जिस पर माता-पिता प्राण छिड़कते रहते थे,
विवा होते ही इतनी विपदग्नस्त हो जाय ! विवाह क्या हुआ, मानो उसकी चिता
बनी, या उसकी मीत का परवाना लिखा गया । इसमें सन्देद नहीं कि ऐसी वैवा-
टिक दुश्ंठनाएँ कम होती हैं; लेकिन समाज की वर्तमान दशा में उनकी सम्मा-
चना वनी रदती ह । जव तक स्रो-पुरुष के अ्रधिकार समान न होंगे, ऐसे आवात
नित्य হীন रहेंगे । दुवंल को सताना कदाचित् प्राणियों का स्वभाव है। काठने-
वाले कुत्ता से लोग दूर भागते ई, सीषे कुत्ते पर वालबृन्द विनोद के लिए, पत्थर
फेकते ই । तुम्दारे दो नोकर एक दी श्रण के हो, उनमें कभी झगड़ा न होगा;
लेकिन आज उनमें से एक को अकसर ओर दूसरे को उनका मातदत बना दो,
पिर देखो, अफसर साएवं अ्रपने मातदत पर कितना रोव जमाते हैं ভুল
दाम्पत्य की नींव अ्विकार-सान्य ही पर रखी जा सकनी है। इस वैपम्य में प्रेम
का निवास हो सकता है, मुझे तो इसमें सन्देद हे। हम श्राज जिसे জী-যুহদ में प्रेम
श्र
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