प्रकाशित जैन साहित्य | Prakashit Jain Sahitya

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Prakashit Jain Sahitya by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ एम० ए० लखनय्ये भी पत्रव्यवहार करिणा, जिन्हे हाल मे पी एच० डीन की उपाधि भी प्राप्त हो गई है, और उन्हे सूचीफे सम्पादन कौ प्रेरणा का, जिसके उत्तर में उन्होंने अपने ४ पअप्रेल १६४६ के पत्र मे लिखा कि हिन्दी सूची भी में मम्पादन करदूंगा श्राप मग़रालें ।” इस स्वीकृति के अनुसार वह सूची उन्हे बनारस से भिजवादी गई श्रौर उन्हें ११ अप्रेल को मिल गई, जिसकी पटच के पत्र तथा वादके भी कुचं पत्रो मे उन्होने सूची के सम्पादन की कुचं कठिनिाष्यो तया श्रपने इकले की श्रसमर्थतादि का उल्लेख करते हुए पुण स परामर्श करने तथा वीरसेवामन्दिर फी माफंत इस कायं के सम्पन्न होने भ्रादि का सुफाव रक्खा। फलत इस प्र थसूची परउम वक्त तके कोई खास काम नहीं हो सका जब तक कि श्री ज्योतिप्रसादजी की नियुक्ति ? ली श्रक्त वर- १९४६ को वीरसेवामन्दिर मे नही हो गई । भुझे उक्त सूची की स्थिति श्रादि का पहले से कोई विशेष परिचय नही था, प्रौर धस लिये यहु सममः लिया गया था कि बा० ज्योतिप्रसाद जी, जिन्टनि सूचीका सम्पादन स्वीकार किया है, अपने अवकाशके समयो मे उस काम को भी करते रहगे, तदनुसार ही उन्हुं उसकी याददिहानी करा दी १६; परन्तु वसा कु नही हो सका । साय ही, यह मालूम पडा कि सूची में कितना ही सशोधन, परिवर्तेतन और परिवद्धेन किया जाने को है। श्रत आफिस वर्क के रूप में इस कार्य सम्पादन के लिए बाबू च्योतिप्रसादजी की खास तौर ते योजना की गर्द भौर कार्य की रूप-रेखा भी प्राय निर्धारित कर दी गई । उस वक्त तक वह सूची कोष्ठको के रूप में थी, अकारादि क्रम से अथ उसमें जरूर दिये थे परन्तु वह क्रम बहुधा कोश-क्रम के अनुसार ठीक नही था--कितने दी ग्रन्थ भागे पीछे लिखे हुए थे, कुछ दोवारा तिवारा प्रविष्ट हो गये थे, बहुत से ग्रन्थ लिखने से छूट गये थे भौर कुछ ग्रथो का परिचय भी कही कही च्रुटित तथा गलत हो रहा था । इन सब दोषोको दूर करते हुए प्रत्येक ग्रन्थके परिचयको जिनरत्नकोशादि की तरह घाराप्रवाह (7ए17778) रूप में एक साथ देने की व्यवस्था की गई और




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