हिन्दुत्व | Hindutav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
950
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दू कोन दे
सुरूदर्मोे पोच भकारे हीन वताये है, परन्त॒ सुुदर्मोके हीनेसि अवदय दी मेरतंत्रका प्रसंग
सिच है ! यहाँ हिन्दूघर्म्मका छोप करनेवार्लेकी चर्चा करके हिन्दू शब्दकी व्युत्पत्ति दी है,
किसी सुकदमेकी चर्चा नहीं है । “द्ीन”'के और अर्थ है, “अघस”? “नीच” “ग््?। जौर “दूप”
निन्दा जीर नष्ट करनेके अर्थे भी आता है । जान पछता है कि “जो कुछ निन्दाके योग्य है उसे
नष्ट करनेवाला, मथवा उसकी निन्दा करनेवाला हिन्दू है” यही तंत्रकारका अभिप्राय जान
पढ़ता है, जो काफिर या नास्तिक कहनेवालोंका एक प्रकारका उत्तर ह 1
दिन्वृ शब्दा पदखेका वाच्यार्थं चाहे आय्य ही रहा हो, परन्तु इतिहास इस बातका
साक्षी है कि वह जनार्य्य भी हिन्दू समझे और माने जाते हैं जो आस्योके अनुकूल धर्म्स
मानते है! आदिदविड अब्राह्य्णेमिं अधिकांश अपनेको अनाय्यै समक्षते है परन्तु दिन्द् क-
लानेमें उन्हें कोई संकोच नीं ই । आजकरूके इतिहासकार भी उन्हें अनार्य्य कहते हैं ।
इसीके विपरीत अनेक आर्व्यसमाजी और त्रह्मसमाजी और सिख अपनेकों हिन्दू कहनेमे
संकोच करते है,-फिर चाहे वह॒ उस शाव्दको रूदिके कारण गर्हित कहते टौ ओर चष्टे
मूर्तिषूता आदि प्रथाओंसे विरोध उसका हेतु हो । कोई कोई घोर नास्तिक भी, जो संसारके
किसी आस्तिक सतके अनुयायी नहीं हैं, अपनेको हिन्दू कहते हैं क्योकि बह न्दू शब्द
राष्ट्रविशेषका घाचक मानते हैं। धर्म्मसे उसका कोई सम्बन्ध नही समझते | गोआमे ऐसे
ईसाई मौजूद है, जो हिन्दू शब्दका व्यवहार तो अपने लिये नहीं करते परन्तु हिन्दुर्ओफे
ऐसे कोई देवी-देवता नी, जिनकी पूजा चह भ्रु थीञ्युखीषके साथ न करते हा । पेसे युस-
लमान भी है, जो गोमांससे बचते हैं और हिन्दू त्योहार मनाते हैं और देवी देवताके स्थानम
जाकर मुंडन संस्कार करते हैं । साथ ही ऐसे हिन्दू भी खोजे मिल ही जायँगे जिन्हें गोमांस
तो क्या नरमांससे भी कोई धृणा नहीं टै। सुरद खनेवारे अघोरपंथी ओघदसे केकर
श्रीसस्प्रदायवाले ब्राहयण आचारीतक हिन्दू हैं, जिनके यहाँ बिल्ली देख ले तो रसोई जशुरू
हो ज्ञाय1 सूजरकी हड्ढीसे गोठक्र झ्ुसल्सानोंकी पकायी रोटीको छेकर “अमृत छकनेवाले”?
गुरु गोविन्द््सिह भी हिन्दू क्या, हिन्दुओंके सिरत्ताज हैं, और अपने हार्थोसे ही पकाया हुआ
भोजन करनेवाले स्वचंपाकी हिन्दुओंकी संख्या भी :थोडी नहीं है। जिन अछ्तोंकी हवासे
ब्राह्मषणको बचना पढता है, क्योंकि वह “हिन्दू” है, उन्हीं अछूतोंको टीक उतने ही भच्छे
“हिन्दू” होनेका गर्व है । सुधारक और पतितोद्धारक झ्ाष्मणोंके साथ बैठकर खानेवाले संगीको,
हिन्दू कहलानेवार्लोकी जूठनसे पछा हुआ उस जातिका चौधरी, “कुजातियों” के साथ भोजन
करनेके अपराधमें जाति-बाहर कर देता हे, क्योंकि उसे अपनी हिन्दू जातिका ब्राह्मणोंसे कम
गर्व नहीं हैं । वर्णाश्रमधर्म्मी भी ऐन्दू हैं और वर्णाश्रमके न माननेवारे भी हिन्दू हैं।
कंधार और चुखांरेसे आकर ब्रिवेणीमें नहाकर और अक्षयवटकी पूजा करके छतार्थ होनेवाले
भी हिन्दू हैं और प्रयाग और काशीजीम रहकर अपनेको हिन्दू सानते हुए भी इन कृतियोंके
विरोधी कम्त हिन्दू नहीं हैं। अनेक विद्वानोंका मत है कि भारतवर्षसे निकले सभी धर्म्म,
सत सम्प्रदाय हिन्दू कहलाने चाहियें। इस तरद्द ईसाई, मुसलमान, यहूदी, अहिन्दू ठहरते
हैं जोर ब्रह्यसमाजी, वौद्ध , जैन, सिख, एवं ओर अनेकं आधुनिक सम्प्रदाय हिन्दू गिने जाते हैं ।
यद् परिभाषा अतिव्यापक उहरती है । इसमे संसारे फैरे कमसे कम चालीस करोड़ चौरू-
षडु
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