पलासी का युद्ध | palasi ka yaudh

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palasi ka yaudh  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ ) उन्होंने उस कविता को 'एजुकेशन गैजूट के सम्पादक वाबू प्यारीचरण सरकार को दिखलाया । सरकार महाशय दूसरे ही दिन नवीनचन्द्र के क्लास में पहुँचे ओर उनकी खूब प्रशंसा करके बोले कि तुम एजुकेशनः गैज़ंट के लिए सदा कविता लिखा करो । नवीनचन्द्र की कविता पहले पहल एजुकेशन, गैज़टः ही में प्रकाशित हुई । उनकी पहली ही कविता देखकर लोगों को मालूम हों गया कि बंगदेश के काव्याकाश मे एकः नवीनचन्द्र का उदय हुआ है। फिर क्या था, उनकी असाधारण प्रतिभः पर कवित्व-शक्ति की स्याति शुक्ल पन्च के चन्द्रमा की तरह दिन दूती, रात चौगुनी चढ़ने लगी.। तब से लेकर अन्त समय तक उन्होंने फुटकरः कवि- ताओ के सिवा अनेक महाकाव्य, काव्य, खण्ड-काव्य और चम्पू ग्रन्थों कीः रचना की । इनमें से ये मुख्य हैं: , . १-अवकाश रज्जिनी, दो भाग... _ १-पलाशिर युद्ध ই-ানবী . ४-रेवतक ५-कुरुचषेत्र , ` ई-प्रमांत ७-द्ममिताम _ ` स-गीता , &-चरडी १०-वृष्ट . , ११-भानुमत ` , १२-प्रवास-पत्र कवित्वे ` ~` ` वाबू नवीनचन्द्र सेन बड़े अतिभाशाली कवि थे। उन्होंने अपने काब्यों मे निष्काम धम्म, त्याग धम्म, भगवद्भक्ति ओर विश्वप्रेम के उच द्यादशी. , का जैसा मनोहर चित्र खवा दै श्रौर सरस तथा मधुर भाषा में जिस सौन्दयै :और चरित्र की सष्टि की है वह वंगभाषा- के साहित्य में चिरकाल तक. अमर रहेगी । और पुएयप्रम ध्रुव॒तारा के समान- चंगालियों को प्रकृत- पथ दि्खिलाती रहेगी । क्या भाव, क्या भाषा, -क्या रसावतारणा समी वातं में नवीनचन्द्र कविजन-वाज्छित गुणों के अविकारी-थे ।




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