राजस्थानी साहित्य संग्रह | Rajasthani Sahitya Sangrah

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Rajasthani Sahitya Sangrah by गोस्वामी श्रीलक्ष्मीनारायण दीक्षित - Goswami Shreelakshminarayan Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ | प्रचलित रही है। राज्य सत्ता, धन सत्ता श्रथवा घराने के वडप्पन की होड को लेकर प्राय श्रममेल विवाह होते रहे हैं । मुगलो मे भो यह प्रथा प्रचलित रही है श्रौर उसके दुष्परिणाम भौ उन्हे भोगने पडे हं । जलाल श्रौर बूबना की वात इसका उदाहरण रहै । हीरां जंसी सृन्दरी का विवाह माणिकचन्द जसे कुरूप व्यक्ति के साथ कर देने से ही हीरा का मन उसके उपयुक्‍त प्रेमी ढढने के लिये विकल हो उठता है भर सयोग से वगसीराम जंसे सुन्दर और साहसी नवयुवक के सपकं मे आकर उसे अपना जीवन अ्रप॑ण कर देती है । कथा को रोचक बनाने के लिये लेखक ने स्थान-स्थान पर गद्य व पद्च में बडे ही सुन्दर वर्णन किये हैं । इस दृप्टि से उदयपुर नगर, बूदी, सहेलियो की बाडी, हीरा का सौंदय व श्यूगार, उसके महल की साज-सज्जा, वगसीराम व उसके साथियो का ठाठ-बाट तथा प्रेमी यूग्म की क्रीडाशो का वर्णन द्र॒ष्टव्य है । कही केटी उक्ति-वेचित्नूय भी देखते ही वनता है । प्रेम की रात प्रेमियो के लिये प्रायः बहुत छोटी हौ जाया करती है । प्रथम मिलन की रात ढलने को हुई है उस समय हौरा की मनोवृत्ति का वणंन लेखक ने सुन्दर संवादात्मक चेली मे किया है । यथा-- वगमीराम कहै दछै-परमात हुवो, मदर फालर घटा बजायो । हीरा कहै छे -- बालम, परभात नही, बधाई बाज छे। श्रऊत घर पुत्र जायो। प्रोहित कहे छे - प्यारी, प्रभात हुई, मुरगी बोल रही छे। हीरा कहै छे -- कुकडा मिलाप नही छे । प्रोहित कहै छे -- प्यारो, प्रभात हुवो, चडिया बोले छे । हीरा कहे छे -- बालम, प्रभाति नही, याका माछ्ठा मे सरप डोलं छे । प्रोहित कहै छे - प्यारी, प्रभात हुवो, चकई चुपकी रही छे । हीरा कहै छे -- बालम, बोल बोल थाकी भई छे। प्रोहित कहै छे --- दीपग की जोति मदी भई छे । हीरा कहै छे -- तेल को पूर नही छे । वगसीराम कहै छँ - सहर को लोग जाग्यो दै । हीरा कहै छे --- कोईक सहर मे चोर लाग्यो छे प्यारो कहै छे -- प्यारी, हठ न कीज्ये, श्रव बहुत कर डेराने हुकम दीज्ये । ॥ (पृष्ठ २६) सपूर्णो बात में गद्य का प्रयोग बडी काव्यात्मक शैली के साथ किया गया है। उसमे लय के साथ साथ तुकान्तता भी है, जिससे उसे पढते समय काव्य का सा आनद आता है। इस द्रष्टि से एक उदाहरण यहा दिया जाता है--




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