दृष्टान्तमाला (पूर्वार्द्ध ज्ञान स्कन्ध) | Drishtantamala (Purvarddha Gyan Skandh)

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Drishtantamala (Purvarddha Gyan Skandh) by उमेशमुनी 'अणु' - Umesh Muni 'Anu'चैतन्यमुनि - Chaitanya Muni

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चैतन्यमुनि - Chaitanya Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ बंदे धस्मदास सुणिदं ॥। 9. दृष्टान्त-मुख सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ । अत्थ-धस्म-गई तच्चं, अणुर्साद्ठ सुणह में ॥ सिद्ध भगवतो और सयतियो-अर्हत, आचारये, उपाध्याय और साधुओं को भावपूर्वक नमस्कार करके, में अर्थ और धर्म का ज्ञान कराने वाली तथ्य रूप शिक्षा कहूँगा, उसे मुझसे सुनो । -उत्तरज्ञयणाइ २०-१ प्रशममूनि के कई शिष्य थे। उनमे कई वहुश्ुत और स्थविर मुनि थे । वे गच्छं की दक्षता से सार-सभाल करते थे । विभिन्न कुलो क मूनियो का भी संरक्षण, सवधन, जान-पोषण आदि करते थे। प्रणम मुनि ने सम्पन्न कूल के एक किशोर को परम वेराग्यवान जानकर, दीक्ना प्रदान की । उन किशोर मुनि का नाम वर्घनमुनि र्वा गया । वर्घनमुन्ति को दीक्षा लिये कुछ मास बीत गये थे । परन्तु उनका मन श्रुत-अभ्यास और स्तोकज्ञान मे रमत्ता नही था । प्रणममृनि नें उन्हे गोव देने के हेतु स्थविर भद्रमूनि को सौपा गौर कहा-हे भद्र ! कुछ ऐसा प्रयत्न करो कि वर्धनमुनि को ज्ञानरुचि और संयम-रमणता प्राप्त हो | फिर उन्होने वर्धनमुनि से कहा- तेत्स ! तुम भद्बमुनि के पास ज्ञान सीखा करो |” दोनो ने गुरु की भाजा शिरोघाय की । दृष्टान्त-मुख




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