दृष्टान्तमाला (पूर्वार्द्ध ज्ञान स्कन्ध) | Drishtantamala (Purvarddha Gyan Skandh)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
उमेशमुनी 'अणु' - Umesh Muni 'Anu'
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चैतन्यमुनि - Chaitanya Muni
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ बंदे धस्मदास सुणिदं ॥।
9.
दृष्टान्त-मुख
सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ ।
अत्थ-धस्म-गई तच्चं, अणुर्साद्ठ सुणह में ॥
सिद्ध भगवतो और सयतियो-अर्हत, आचारये, उपाध्याय और
साधुओं को भावपूर्वक नमस्कार करके, में अर्थ और धर्म का ज्ञान
कराने वाली तथ्य रूप शिक्षा कहूँगा, उसे मुझसे सुनो ।
-उत्तरज्ञयणाइ २०-१
प्रशममूनि के कई शिष्य थे। उनमे कई वहुश्ुत और स्थविर
मुनि थे । वे गच्छं की दक्षता से सार-सभाल करते थे । विभिन्न कुलो
क मूनियो का भी संरक्षण, सवधन, जान-पोषण आदि करते थे।
प्रणम मुनि ने सम्पन्न कूल के एक किशोर को परम वेराग्यवान
जानकर, दीक्ना प्रदान की । उन किशोर मुनि का नाम वर्घनमुनि
र्वा गया । वर्घनमुन्ति को दीक्षा लिये कुछ मास बीत गये थे ।
परन्तु उनका मन श्रुत-अभ्यास और स्तोकज्ञान मे रमत्ता नही था ।
प्रणममृनि नें उन्हे गोव देने के हेतु स्थविर भद्रमूनि को सौपा गौर
कहा-हे भद्र ! कुछ ऐसा प्रयत्न करो कि वर्धनमुनि को ज्ञानरुचि
और संयम-रमणता प्राप्त हो | फिर उन्होने वर्धनमुनि से कहा-
तेत्स ! तुम भद्बमुनि के पास ज्ञान सीखा करो |” दोनो ने गुरु की
भाजा शिरोघाय की ।
दृष्टान्त-मुख
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