जैनसिद्धान्त प्रवेशिका प्रथम खण्ड | Jain Siddhant-praveshika Khand-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपकारी हों, उन्हे पहले वन्दना कौ जाय । श्ररिहंत सिद्धों
से विशेष. उपकारी रहै, श्रत नमस्कार मन्न मे उनको पहले
नमस्कार किया गया है ग्रौर सिद्धो को पी नमस्कार किया
गया है ।
देवों के समान गुरुओ में भी जो अ्रधिक उपकारी हों,
उन्हे पहले नमस्कार करना चाहिये । सबकी दृष्टि मे सामा-
नये साधुशों से उपाध्याय अधिक उपकारी है क्योकि वे
पढाते है । उपाध्याय से भी आचायें अधिक उपकारी हैं,
क्योकि वे श्राचार पलवाते है । वे सघ के नायक भी होते
है । अत. ग्रुरुओं में सबसे पहले आचार्यों को, पीछे उपाध्यायों
को, श्रन्त से सब साधुओ को नमस्कार करना चाहिए ।
सुमति : क्या सिद्धों को सदा ही अरिहतों से पीछे ही नम-
स्कार करना चाहिए ?
उषा० : नही । भागे तुम नमस्कार मत्रके सामने एक नमो-
রি त्युणं का पाठ सीखोगे, उसको दो बार बोला जाता
है । वहा सिद्धो को पहले नमोत्थण से पहले नम-
स्कार किया जाता है और श्ररिहंतो को दृत्तरे
नमोत्युण से पीछे नमस्कार किया जाता है जिससे
यह जानकारी भी हो जायें कि उपकार-रष्टि स
प्ररिहंत बड़ है, परन्तु गुण की दृष्टि से सिद्ध ही
बड़ है ।
विमल देव बड़ क्यो और गुरु छोटे क्यों ?
उपा० : १ देवो ने भ्नात्म-शतुभ्नं को जीत लिया है, पय
गुरुओं को जीतना बाकी है । २. देवो में केवलज्ञान
(सम्पूर्ण ज्ञान) आदि प्रकट हो चुके है, पर ग्रुरुओं
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