जैनसिद्धान्त प्रवेशिका प्रथम खण्ड | Jain Siddhant-praveshika Khand-1

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Jain Siddhant-praveshika Khand-1 by चम्पालाल डागा- Champalal Daga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपकारी हों, उन्हे पहले वन्दना कौ जाय । श्ररिहंत सिद्धों से विशेष. उपकारी रहै, श्रत नमस्कार मन्न मे उनको पहले नमस्कार किया गया है ग्रौर सिद्धो को पी नमस्कार किया गया है । देवों के समान गुरुओ में भी जो अ्रधिक उपकारी हों, उन्हे पहले नमस्कार करना चाहिये । सबकी दृष्टि मे सामा- नये साधुशों से उपाध्याय अधिक उपकारी है क्योकि वे पढाते है । उपाध्याय से भी आचायें अधिक उपकारी हैं, क्योकि वे श्राचार पलवाते है । वे सघ के नायक भी होते है । अत. ग्रुरुओं में सबसे पहले आचार्यों को, पीछे उपाध्यायों को, श्रन्त से सब साधुओ को नमस्कार करना चाहिए । सुमति : क्‍या सिद्धों को सदा ही अरिहतों से पीछे ही नम- स्कार करना चाहिए ? उषा० : नही । भागे तुम नमस्कार मत्रके सामने एक नमो- রি त्युणं का पाठ सीखोगे, उसको दो बार बोला जाता है । वहा सिद्धो को पहले नमोत्थण से पहले नम- स्कार किया जाता है और श्ररिहंतो को दृत्तरे नमोत्युण से पीछे नमस्कार किया जाता है जिससे यह जानकारी भी हो जायें कि उपकार-रष्टि स प्ररिहंत बड़ है, परन्तु गुण की दृष्टि से सिद्ध ही बड़ है । विमल देव बड़ क्यो और गुरु छोटे क्‍यों ? उपा० : १ देवो ने भ्नात्म-शतुभ्नं को जीत लिया है, पय गुरुओं को जीतना बाकी है । २. देवो में केवलज्ञान (सम्पूर्ण ज्ञान) आदि प्रकट हो चुके है, पर ग्रुरुओं | १३




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