मित्र | Mitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.98 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिन्न
न साथ बल्ले कि
शनवरो--क्यों री तू अपने को कायर चना रही
है । पुरुष जन्मा ही इघ लिए है कि वह दुनियां में श्वपने बल्ल-
विक्रम का घजाता फिरे 1
भ्रख्तरी--क्यों साँ, सच बता दो, क्या बारतव में दूसरे की
जान लेना कोई अच्छा काम है ?
श्नवरी चुरा में नहीं जानती. इतना कह सकती हूं
कि जिन स्त्रियों के पति युद्ध-भूमि में पौरुप प्रदर्शित करते हैं
वे पते भाग्य पर अभिमार करती हूं । जिन साताओं के पुत्र
देश की मान-रक्षा के लिए तलवार पकड़ते हैं, ये समभती हैं,
उनका साँ दोन घन्य हुआ ।
श्रख्वरी-इसलिए कि ये दूसरी माताओं की गोद सूनी -
करते हैं, मैं लड़ाई को बहुत चुत कान समसाती हूं माँ ।
थनवरी--पमान लो अख्तरी, कोई लड़का तुम्दारा शुड़ा -
छीनने लगे तो तुम कया करोगी ?
ख्तरी-मैं उससे कि आओ हम दोनों मिल कर
इससे खेलें-
अगर वह कहे में झकेला दी खेंलूगा;
तुझे नददीं खेलने दूंगा ! -
छख्तरी--तो मैं गुड़ लेकर माग जाउंगी ?
_... श्रनवरी-सेकिन वहं भागने में तुमसे तेज हुआ, आर
छागर उसने तुम्हें पकड़ लिया तो ?
में उसे काट खाऊंगी 1 -
झनवरी--अबस यददी वो लड़ाई है. । ये घादशाइ लोग--
दूसरों की प्रथ्वी सम्पत्ति छीनने के लिए झपनी सेना
लेकर झाक्रमण कर देते हूं । चादे कोई दुबल दो; ० चाहे बल-
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