मित्र | Mitra

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Mitra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिन्न न साथ बल्ले कि शनवरो--क्यों री तू अपने को कायर चना रही है । पुरुष जन्मा ही इघ लिए है कि वह दुनियां में श्वपने बल्ल- विक्रम का घजाता फिरे 1 भ्रख्तरी--क्यों साँ, सच बता दो, क्या बारतव में दूसरे की जान लेना कोई अच्छा काम है ? श्नवरी चुरा में नहीं जानती. इतना कह सकती हूं कि जिन स्त्रियों के पति युद्ध-भूमि में पौरुप प्रदर्शित करते हैं वे पते भाग्य पर अभिमार करती हूं । जिन साताओं के पुत्र देश की मान-रक्षा के लिए तलवार पकड़ते हैं, ये समभती हैं, उनका साँ दोन घन्य हुआ । श्रख्वरी-इसलिए कि ये दूसरी माताओं की गोद सूनी - करते हैं, मैं लड़ाई को बहुत चुत कान समसाती हूं माँ । थनवरी--पमान लो अख्तरी, कोई लड़का तुम्दारा शुड़ा - छीनने लगे तो तुम कया करोगी ? ख्तरी-मैं उससे कि आओ हम दोनों मिल कर इससे खेलें- अगर वह कहे में झकेला दी खेंलूगा; तुझे नददीं खेलने दूंगा ! - छख्तरी--तो मैं गुड़ लेकर माग जाउंगी ? _... श्रनवरी-सेकिन वहं भागने में तुमसे तेज हुआ, आर छागर उसने तुम्हें पकड़ लिया तो ? में उसे काट खाऊंगी 1 - झनवरी--अबस यददी वो लड़ाई है. । ये घादशाइ लोग-- दूसरों की प्रथ्वी सम्पत्ति छीनने के लिए झपनी सेना लेकर झाक्रमण कर देते हूं । चादे कोई दुबल दो; ० चाहे बल-




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