सृष्टिवाद और ईश्वर | Shristhivad Aur Ishwar
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
572
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथात्-यह विशेष स्ष्टि किसमे से उत्पन्न हुई, अथवा
किसी ने उसको धारण किया कि नहीं, अथवा उसका अध्यक्ष
परम आकाश में निवास करता है कि नहीं, इस बात को कौन
जानता द ! इस उपराक्त एक ही ऋचा के आधार से जाना जा
सकता है कि जगतू के निर्मित्त अथवा उपादान कारण के
सम्बन्ध मे कोई निश्चयात्मकरूप से ज़ानता नहीं ऐसा ही
अभिश्राय घेदकालीन ऋषियो का भी था ।
सीमांसा दशन से भी यही ध्वनित होता हं । पूर्व मीमासा-
कार जैमिनी ऋषि की मीमांसा दशंन की पुस्तक शशास्त्रदीपिका
तथा श्लोक वार्तिकः का यदि मनन किया जवे तो स्पष्ट रूप
से ज्ञात होता है कि सृष्टि तथा इसके कतृ त्व की विचारणाओं
मे इस ऋषि ने गतानुगतिकता का अवलम्बन नहीं किया हैं ।
अथोत् लकीर का फकीर नही बन गया हे । मीमांसा दुर्शनने
न्य दशनां की सम्पूणं दलीलां तथा शंकाश्यो का विश्लेषण
करके सिद्ध किया है कि--सृष्टि की आदि होवे ऐसा कोई काल
नहीं है,जगत् स्वंदा इसी प्रकार का ही हैं । इस अकार का कोई
समय भूत काल में आया नहीं, जिसमे कि यह संसार किसी
रूप में विद्यमान न रहा हो इस ही प्रकार से इश्वस-कंल के
सम्बन्ध में भी अन्य सम्पूणं दृशनकारो मे इस प्रकार कद् दिया
है कि ईश्वर स्वयं जन्म-मरण रहित हे, वह दूसरे पदार्थो को
उत्पन्न नहीं करता है, तथा यदि उत्पन्न करने की इच्छा करता
है तो एक क्षण में ही सब कुछ कर सकता है । जब कि वह
सवं शक्तिमान दै तो कम-क्रम सं विलम्ब करकं किसलय
User Reviews
No Reviews | Add Yours...