भौतिक विज्ञानं में क्रान्ति | Bhautik Vigyan Mein Kranti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সদ प् ज
आधी से अधिक का ज्ञान हमे यथाथतापूर्वंक हो ही नहीं सकता । सच तो यह ह कि
निकाय की किसी एक लाक्षणिक राशि का जितना ही अधिक यथार्थ ज्ञान हमें होगा
उतनी ही अधिक अनिश्चित उससे संयुग्मित दूसरी राशि हो जायगी। इस बात से
प्राकृतिक घटनाओं की प्राकनिर्णीतता के सम्बन्ध में प्राचीन और नवीन भौतिक
विज्ञान में बहुत महत्त्वपूर्ण अन्तर पैदा हो जाता ह । प्राचीन भौतिक विज्ञान मं
कम-से-कम सिद्धान्ततः तो यह सम्भव था कि किसी निकाय के अवयवबों के स्थान
और उससे संयग्मित गत्यात्मक राशियों को निर्धारित करनेवाली राशियों के यौग-
पदिक ज्ञान के द्वारा किसी परवर्ती क्षण पर उस निकाय की जो अवस्था होनेवाली
है उसको हम कठोर गणना के द्वारा पहले से ही जान लें | किसी क्षण 1, पर
किसी निकाय की परिलक्षक राशियों के मान >, $. ...-को यथार्थतः जान
लेने पर पहले हम निर्चित रूप से बता सक्ते थे कि किसी परवर्ती क्षण ८ पर उन
राशियों को नापने से उनके क्या मान >, $, . . . पाये जायंगे । यह परिणाम भौतिक
तथा यान्त्रिक सिद्धान्तो के मूल समीकरणो के रूप तथा उन समीकरणों के गणितीय
गुणों का था । वतमान घटनाओं के द्वारा भविष्य की घटनाओं की बिलकुल संशयहीन
प्रागुक्ति की सम्भावना के द्वारा अर्थात् भविष्य किसी न किसी प्रकार वतंमान में
ही निहित ह ओर उसमें कोई नवीन बात प्रविष्ट नहीं होती इस धारणा के ही
द्वारा उस मान्यता की सृष्टि हुई थी जिसे हम प्राकृतिक घटनाओं का नियतिवाद'
कहते हैं। किन्तु इस संशयहीन प्रागुक्ति के लिए आकाशीर्या अवस्थापन की चर
राशियों के तथा उनसे संयुग्मित गतिकीय राशियों के यौगपदिक मानों का यथातथ
ज्ञान आवद्यक हैं। और क्वांटम सिद्धान्त ठीके इसी ज्ञान को असम्भव बतलाता हैं।
इसी कारण आज प्राकृतिक घटनाओं के परम्परा-क्रम और भौतिक सिद्धान्तों की
प्रागुक्ति कर सकने की क्षमता के सम्बन्ध में भौतिकज्ञों की (कम से कम उनमें से
बहुतों की) विचारधारा में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया हैं। किसी क्षण ८, पर
निकाय की लाक्षणिक रारियों के नपे हुए मानों मं क्वांटम-सिद्धान्त के अनुसार कु
अनिवायं अनिदिचतता रहती ही है । इस कारण भौतिकज्ञ पहले से यह टीक-टीक
नहीं बता सकतां किं उन रादियो के मान किसी परवर्ती क्षण पर क्या होगे । वह केवले
यही कह सक्ता हं कि किसी परवर्ती क्षण पर नपि हुए मान किन्हीं निर्दिष्ट संख्याओं
के बराबर होंगे, इस बात की प्रायिकता कितनी हैं। जिन नापों से भौतिकज्ञों को
2, 181207008 2. 10606001019], 9, 9108619] 4. ?700801119
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