षटखंडागम - खंड 6 | Satkhandam - vol-6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
617
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रोका-समाधान
पुस्तक १ ? 0 ७ ©
१. शंका--यहां पष्टभक्त उपवासका अर्थ जो दो दिनका उपवास किया है बह किंस
प्रकार संभव है १ ( नानकचंदजी, खतौली )
समाधान--नियमानुसार दिनमें दो वार भोजनका विधान है। किन्तु उपवास
धारण करनेके दिन दूसरी वारका भोजन त्याग दिया जाता है और आगे दो दिनके चार
भोजन भी ह्याग दिये जाते हैं | इस प्रकार चूंकि दो उपवासोंमे पांच भोजनवेछाओंको
छोड़कर छठी वेछापर भोजन ग्रहण किया जाता है, अतएव पष्ठभक्तका अथे दो उपवास करना
उचित ही है। उदाहरणाथ, यदि अष्टमी व नवमीका उपवास करना है तो सप्तमीकी एक,
अष्टमीकी दो और नवमीकी दो, इस प्रकार पांच भोजनवेलाओंको छोड़कर दशमीके
दोपहरको छठी वेछापर पारणा की जायगी।
पुस्तक १, एृ. १९२
२, शंका--यहां उद््ध्वत गाथा २५ के अनुवादम योग पदका अथ तीनों योग किया
है । परन्तु गोम्मटसार गाथा ६४ में उक्त पदका अथ केवल काययोग ही किया है। क्या
केवलीके तीनों योग हो सकते हैं ! ( नानकचंदजी, खतोली )
समाधान--केव्के तीनों योग होते है, इसीलिये उनका अन्तमें निरोध भी किया
जाता है । गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६४ की जी. प्र. टीकार्म योग पदसे सामान्यतया योग
और मं, प्र, टीकामें मन, वचन व काय योगोंमें अन्यतम योग लिया गया है |
पुस्तक १, प, १९६
३. शंका--यहां सम्पूण भावकम ओर द्रव्यकर्मोति रहि होकर सर्वज्ञताको प्रात इए
जीवको आगमका व्याख्याता कहा है । क्या तेरह गुणस्थानमे समप दृव्यकर्म दूर हो जाते है !
- ( नानकचंदजी, खतौली )
समाधान- सम्पूण कर्मोसे रहित होनेका अभिप्राय चार घातिया कर्मोसे रहित
होनेका है, अधातियोंसे नहीं, क्योंकि, ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्म ही क्रमश: अज्ञान,
अदरशन, मिथ्यात्व सहित अविरति, और अदानरीरत्वादि दोषोको उत्पन्न कते है जा क
आगमव्याख्याता होनेमे बाधक है । (देखो आप्तमीमांसा १, ४-६ व विद्यानन्दिकी टीका अष्टसहसी )
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