षटखंडागम - खंड 6 | Satkhandam - vol-6

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Satkhandam - vol-6 by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोका-समाधान पुस्तक १ ? 0 ७ © १. शंका--यहां पष्टभक्त उपवासका अर्थ जो दो दिनका उपवास किया है बह किंस प्रकार संभव है १ ( नानकचंदजी, खतौली ) समाधान--नियमानुसार दिनमें दो वार भोजनका विधान है। किन्तु उपवास धारण करनेके दिन दूसरी वारका भोजन त्याग दिया जाता है और आगे दो दिनके चार भोजन भी ह्याग दिये जाते हैं | इस प्रकार चूंकि दो उपवासोंमे पांच भोजनवेछाओंको छोड़कर छठी वेछापर भोजन ग्रहण किया जाता है, अतएव पष्ठभक्तका अथे दो उपवास करना उचित ही है। उदाहरणाथ, यदि अष्टमी व नवमीका उपवास करना है तो सप्तमीकी एक, अष्टमीकी दो और नवमीकी दो, इस प्रकार पांच भोजनवेलाओंको छोड़कर दशमीके दोपहरको छठी वेछापर पारणा की जायगी। पुस्तक १, एृ. १९२ २, शंका--यहां उद््‌ध्वत गाथा २५ के अनुवादम योग पदका अथ तीनों योग किया है । परन्तु गोम्मटसार गाथा ६४ में उक्त पदका अथ केवल काययोग ही किया है। क्या केवलीके तीनों योग हो सकते हैं ! ( नानकचंदजी, खतोली ) समाधान--केव्के तीनों योग होते है, इसीलिये उनका अन्तमें निरोध भी किया जाता है । गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६४ की जी. प्र. टीकार्म योग पदसे सामान्यतया योग और मं, प्र, टीकामें मन, वचन व काय योगोंमें अन्यतम योग लिया गया है | पुस्तक १, प, १९६ ३. शंका--यहां सम्पूण भावकम ओर द्रव्यकर्मोति रहि होकर सर्वज्ञताको प्रात इए जीवको आगमका व्याख्याता कहा है । क्या तेरह गुणस्थानमे समप दृव्यकर्म दूर हो जाते है ! - ( नानकचंदजी, खतौली ) समाधान- सम्पूण कर्मोसे रहित होनेका अभिप्राय चार घातिया कर्मोसे रहित होनेका है, अधातियोंसे नहीं, क्योंकि, ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्म ही क्रमश: अज्ञान, अदरशन, मिथ्यात्व सहित अविरति, और अदानरीरत्वादि दोषोको उत्पन्न कते है जा क आगमव्याख्याता होनेमे बाधक है । (देखो आप्तमीमांसा १, ४-६ व विद्यानन्दिकी टीका अष्टसहसी )




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