संतान कल्पद्रुम | Santan Kalpdrum

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Santan Kalpdrum by पं. रामेश्वरानन्द जी - Pt. Rameshwaranand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( «४ ) हम देखते हें. कि इस समय पश्चिसी आपाकी छश ओणीरछी शिक्षार्दाक्षाप्राप्त जितने छोग उपस्थित हैं उनमेंसे देश और जाति- के शुभचिन्तक थहुत्त ही थोड़े माइंके छाछ हैं। बाकी मान- मर्यादाके सदसें डूबे हुए अपने जातिभाइयोंको तुच्छ समझते है और मनुष्य मात्रके ऊपर अपने गुरूर (गये ) का दखल जमाते हैं। एसे मनुष्योंस देश तथा जातिकी कुछ भी मलाई नहों होती। इस कथनसे कोइ यह न समझे कि हम छच्च श्रेणी- की शिक्षाके विरोधी है। नहीं, हमारा कथन यह है कि उच्च श्रेणी- की शिक्षाके लिये उत्तम और श्रेष्ठ संस्कारयुक्त रज-वीय्यस सन्तान उत्पन्न दोनी चा्िए । जसे एक बीजसे एक वृधक्षक उत्पन्न दोनमे प्रथ्वी, खाद, जलबायु और धूप वनैरहकी आवश्यकता हैं ओर इन सबके अमुकूछ होनेपर भी यवि बीज उत्तम और दोषरद्दित न हो तो युक्त और यथाथ साधन होनेपर भी वृक्षकों कल्पदुम नहीं बना सकते । इसी प्रकार बालकको उत्पत्तिके ल्यि माता-पिताका रजवीय्य दुशणोसे दूषित ओर मानसिक शक्तिके उत्तम सस्कारोस रहित हो तो एसे रज-बीयेसे उत्पन्न हुए सन्तानकों उच्च अ्रणीकी शिक्षा नही सेभाक सकनी । इस बातके हजारों दृष्टान्त इस समय देशमे उपस्थितं हे । हजारो मनुष्य खच प्रणीकी शिक्षा प्राप्त करके देश ओर जातिकी भलाईसे बद्दिमुख हैं, जबदृस्त- की खुशामद और सेवासे अपनी उच्च अणीकी शिक्षाका दूषित कर रहे हैं, जबदंस्तका आश्रय लेकर देशकी भलाई चाहनेवाछो- को गारत कर रहे हैं । इसका मुख्य कारण यही है कि उश्च श्रेणी- की शिक्षा प्राप्न करने पर भी वे उतम नेणीके मनुध्य नहं बनते




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