रुसी इतिहास का सर्वेक्षण | Rusi Itihas Ka Sarvekshan

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Rusi Itihas Ka Sarvekshan by B. H. Sumnerडॉ. देवसहाय त्रिवेद - Dr. Devasahay Trivedi

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बी. एच. सन्मर - B. H. Sumner

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीमा स्थिति और गर-रूसियों अथवा लाल हिन्दियों की परिवर्त्तनशील प्रतिरोधी शर्व्तियों के कारण बस्तियाँ वीरान प्रदेश में दन्तुर हुई भर जिहू वाकार में आगे घढ़ीं । रूस तथा अमेरिका दोनों देशों में सबसे अधिक कृषक ही जंगल तथा समतल के खानाबदोशों को खदेड्कर भागे बढ़े । गत शती में उत्तरी अमेरिका में सर्वप्रथम हल से चारागाहों को जोता गया । इस कारण भूमि का झोषण बहुत तेजी से बढ़ने लगा और यह अपरदन श्र अव्वल दरजे की राष्ट्रीय समस्या बन गई है। किस्तु रूस में यह सब गम्भीर पर कम विनाशक रूप में हुआ क्योंकि यहाँ विकास की गति कुछ मन्द थी और पिछले बारह वर्षों के पहले भूमि पर यन्त्ों को प्रयोग कुछ कम ही हुआ । बहुत प्राचीन काल से ही रूस के शिकारी मछुए तथा मधुपालक कृपकों से भागे रहे। समूर शिकार मत्स्य मधु एवं मोम से आच्छादन भोजन तथा प्रकाश का काम चल जाता था । साथ ही इन्हीं से करों का भुगतान हो जाता था. रईसों के लिए विलास-सामग्री जुट जाती थी तथा प्रारम्भ में रूसी निर्यात के लिए प्रधान घस्वुएं मिल जाती थीं । शिकारी तथा व्यापारी प्रायः वहीं होते थे । कभी-कभी थे नदियों में डकंती करते तथा लुटेरे सवार भी बन जाते थे । निश्चय ही इन लफन्दरों की छोटी टोलियों के आखेट-क्षेत्र भी अनिदिचित थे भर सदा बदलते रहते थे। देश विशाल थ्रा।. लोग कम थे । वन्य जन्तु के स्थानान्तरण तथा आगे जो कुछ अशोषित पड़ा था उसकी कद्दानियों पर ही इनका संचालन भी निभेर था । संघर्ष अथेलिप्सा साहस फन्द भौर नेपुण्य का अभिमान जाल धनुष डॉगी तथा ने मिलकर सीमा को पूर्व और उत्तर में आगे ढकेल दिया । कालान्तर में घॉत्गा के कनीय राजकुमारों ने तथा नवगोरोद के साहसी व्यापारियों ने मिलकर इस सीसा को बढ़ाने में और सहयोग दिया । दक्षिण की बात दूसरी रही । वहाँ टेपीज के तातार लोग मजबूत थे और रूसी सीमान्तवासी चिरकाल तक अपने बचाव में ही लगे रहे किन्तु अन्तत सोलहवीं शती में कजाक वहाँ भी पहुँच ही गये । वे फजाक रूस के सर्वेप्रसिद्ध सी मान्तवासी शिकारी थे । लकड़हारों ने अपने तरीके की एक नई ही अग्रसीमा निर्मित की । इस क्षेत्र में उग्होंने किसी हद तक केवल गत सौ वर्पों में ही दक्षता प्राप्त की । खनकों की सीमा भौर भी नूतन है और स्थान 1700 ई० के पूर्व की न हो सकेगी जब महानू पीटर ने बहुत अंधों में एक नये लौह तथा की स्थापना प्रधानत उरल-प्रदेश में किया था एवं निश्चयात्मक ढग से साइवेरिया में स्वर्ण और रजत की खोज में आगे बढ़ा था ।. स्वर्ण-लिप्सा के कारण एक नये प्रकार की खनक-सीमा बनने लगी और इसका अपना विशेष इतिहास है। यद्यपि सोवियत विकास से संघ को दक्षिण अफ्कि के बाद संसार में स्वर्ण का दूसरा सबसे वड़ा उत्पादक देश बना दिया है फिर भी सोने का उतना महत्त्व नहीं रहा है जितना कम मृत्यवाले घातुओं का । पीटर के समय से ही र।ज्य ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृपक दामों 1 5




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