उपनिषदों के चौदह रत्न | Upnishadon Ke Chaudah Ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनोखा अतिथि 9
पूर्णाहति होनेपर परम श्रद्धासे ऋत्विकृणणको दक्षिणा बाँटते हैं ।
आकांक्षारह्वित होकर सात्तिक यज्ञकतों वेदविधिका पूर्णतया पालन
करते हुए समस्त कार्य सम्पादन करते हैं। ऐसे पवित्र युगमें
ऋषि वाजश्रवाके सुपुत्र उद्दालक मुनिने विश्वजित् नामक एक यज्ञ
किया । इस यन्ञमे सर्वख दान करना पडता है । तदनुसार वाज-
श्रवस ( वाजश्रवाके पुत्र ) उदालकने भी “सर्ववेदसं ददौ -अपना
सारा धन ऋषियोको दे दिया } ऋषि उदालकके नचिकेता नामक
एक पुत्र था । জিভ समय ऋषि छषिज ओर सदस्योको दक्षिणा
बाँट रहे थे और उसमें अच्छी-बुरी सभी तरहकी गोौएँ दी जा रही
थीं उस समय बालक नचिकेताके निर्मल अन्तःकरणमें श्रद्धाने
प्रवेश किया । नचिकेताने अपने मनमें सोचा---
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरिन्द्रियाः)
अनन्दा नाम ते खोकास्तान् स गच्छति ता ददत् ॥
(कठ० १ 1१18३ )
“जो गौएँ ( अन्तिम बार ) जल पी चुकी हैं, घास खा चुकी
हैं और दृध दुहा चुकी हैं; जो शक्तिहीन अर्थात् गर्भ धारण
करनेमे असमर्थ है, रेसी गायोको जो दान करता है बह उन ,
लोकोंको प्राप्त होता है जो आनन्दसे शून्य है ।'
यज्ञके बाद गौदान अवश्य होना चाहिये, परन्तु नहीं देने
योग्य गोके दानसे दाताका उठा अमड्गल होता है। इस प्रकारकी
भावनासे सरलह्ृदय नचिकेताके मनमें बड़ी वेदना हुई और
अपना बलिदान देकर पिताका अनिष्ट निवारण करनेके लिये
उसने कहा--
বল कस्मै मां दास्यसीति ।
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