तिरुक्कुरल | Tirukkural

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Tirukkural by गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वो दुनियाँ के वैभवों को ओर वहीं तक नजर डालता है जहाँ तक ऐसा करने से उसकी आत्मा को नुकसान न पहुंचे। आत्मा अगर दुर्गंति को गया तो दुनियाँ के बेभवों के संग्रहसे क्या प्रयोजन ? अब जिनको साइनटिफिक्‌ धर्म का पता चल गया है या जिन्हें मालूम है, उनका कतंव्य है कि वो आत्मविज्ञान का पूर्ण रूपेण दुनियाँ में प्रचार करने में लग जाएँ और इस तरह प्रचार करें जिससे किसी को बुरा न लगे--प्रेम और मित्रता से काम लें--किसी को दुतकारें नहीं, न किसी के लिये म्लेच्छ या धर्मश्रष्ट आदि शब्दों का प्रयोग करें। प्रेम के साथ जब आत्मविज्ञान का प्रचार होगा तो निस्सन्देह लोगों के दिलों पर उसका असर पड़ेगा, परन्तु याद रहे प्रचार को स्वयं अपने मन के पाखंडों से, यदि कोई उसमें हों तो उनसे मुक्त होना पड़गा ।' (चंपतराय जेन- धमं रहुस्य -प० ११०-१११, १६४०)




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