भारतीय गौरव (संशोधित तथा परिवर्द्धित) | Bhartiya Gaurav (Sanshodhit Tatha Parivardhit)

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Bhartiya Gaurav (Sanshodhit Tatha Parivardhit) by वासुदेव उपाध्याय - Vasudev Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ নু [1 ० वि भारत का प्रक्रितिक विवरण ७ कुछ कहना यू क्तिसंगत मालूम पड़ता हं । भारत में चन्द्रगुप्त मौय ने साम्राज्य स्थापित कर अपनी सीमा नीति को स्थिर कर दी थी । सेल्यूकस से सन्धि कर भारतीय सीमा पर स्थित भभाग को भी उसने ले लिया ताकि दर्रा के बाहरी भाग पर भी शासक का अधिकार रहे। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में सीमा पार करने के लिए पासपोर्ट की भी चर्चा की हे । अशोंक ने उस नीति का पालन किया, अतएवं उसने तक्षशिला को प्रांत का केन्द्र स्थिर किया और राज- कुमार उस प्रांत के गवर्नर पद को सुशोभित करते रहे। अशोक स्वयं . वहां पर गवर्नर का काम कर चुका था। मौर्यों के बाद कनिष्क ने सीमा के महत्व को समभ कर पुरुषपुर (पेशावर) को अपनी राज- धानी बनायी | खोतान से काशी तक राज्य विस्तुत होने पर भी उसी सीमा पर स्वयं रहना उचित समझा । उस समय (पहली सदी) के बाद भारतीय नरेशों ने सीमा नीति पर ध्यान न दिया। गुप्तों का राज्य सारे उत्तरी भारत में फेला था परन्तु सीमा पर उनका ध्यान न था। यही कारण हे कि हुण छोग उस मार्ग से भारत में घुस गये जो गृप्त, साम्राज्य के पतन का एक कारण हो गये। .पूर्व मध्य काल में गृजर प्रतिहार के बाद किसी राजा ने विदेशी आगमन परदृष्टि न डाली । अरब वाले सिन्ध के मार्ग से भारत में प्रवेश कर गये पर विशेषकर उनका आना समुद्र से हुआ । ११वीं सदी में उत्तर पश्चिमी' प्रांतमें ब्राह्मण साही राजा शासन करते रहे जो सीमा.के महत्त्व को पूर्ण रीति से समभे रहे । सुबुक्तगीन के विरोध में जयपाल ने भारतीय राजाओं को निमंत्रित किया था पर सम्मिलित होने पर भी राष्ट्रीय भावना के अभाव में कुछ हो न सका । सीमा पर अधिकार रखने के महत्त्व की बिना समझे सीमित क्षेत्र में कार्य करते रहे । अन्त में वही हुआ | इसलामी सेनाओं ने इसी पहाड़ी मार्ग से , होकर भारत में प्रवेश किया । अतएवं इस मार्ग की प्रधानता सदा से रही है + ब्रिटिश काल में भी इस मार्ग की रखव।ली की जाती थी। लांडीखाना में किला तथा फौज का समारोह था। क्राबुल में दक्षिण




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