सिंगापुर से [तीन अंकी नाटक] | Singapore Se [Teen Anki Natak]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिंगापुर से ह
सदानंद : बेठीं तारा | (शान्ताराम से) हमारा और इनका वडा
ঘতীলা है, शान््त् काका | हम दोनों एक ही परिवार के दो व्यक्तियों
के समान हैं। देखा नहीं आपने कितनी सुन्दर मराठी बोलता है
यह ?
शान्ताराम : बेशक | उधर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था| पिक्ख
शायद मराठी नहीं बोलते, क्यो ? वेसे देखा जाय तो सिकक््ख और
मराठों के बीच बड़े सम्मान का नाता है | हमारे संत नामदेव লিঙ্গ
के गुरु-परिवार क्े हैं | है न ?
तारासिह : जी हाँ, ठीक कह रहे हैं आप । वेसे में कोई बड़ा घामिक
नहीं हूँ | लेकिन म॒र्क कुछ घँघली-सी याद है कि मेरे पिताजी बार-
बार नामदेव का नाम लिया करते थे | जब से यह मुल्कगिरी शुरू
हो गयी है; तब से हम लोगों ने घ्मे ओर ग्रन्थ सब लपेटकर
अलग रख दिये हैं । अब तो एक ही बात जानते है कि हम लडके
हैं, बहादुर हैं | हम कोई भी धंधा करें, फिर भी মাল হল লা
और बहादुर हीं रहेंगे ।
शान्ताराम : हम भी थे लडाके ओर बहादुर | हमारे प्रृव॑जों ने बढ़ी
तलवार खींची थीं। लेकिन अब उस्तरे का फाल भी देखते हैं तो
भय से कलेजा कांप उठता हैं- इसीलिए तो आजकल सेफ्टीरेजर
काम में लाते हैं। (विचित्र रीति से हँसकर) तुम अपने आपको
बहादुर समते हो, इसीलिए आज तक अकडकर चलते हो-रात-
दिन अपने पास किरपान रखे रहते हो | लडते मी ह्ये इधर-उधर
जाकर--हम लोग तो अपने पूत्रजों की पिफ डींयें क्षा करते हैं--
(फिर हँसकर)--ऐसा লজা ই
सदानंद : (तारातिंह को आँख से इशारा करता है )--आज शायद
रंगून से तरहुत लोग आये हैं ?
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