सिंगापुर से [तीन अंकी नाटक] | Singapore Se [Teen Anki Natak]

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Singapore Se [Teen Anki Natak] by मामा वरेरकर - Mama Varerkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिंगापुर से ह सदानंद : बेठीं तारा | (शान्ताराम से) हमारा और इनका वडा ঘতীলা है, शान्‍्त्‌ काका | हम दोनों एक ही परिवार के दो व्यक्तियों के समान हैं। देखा नहीं आपने कितनी सुन्दर मराठी बोलता है यह ? शान्ताराम : बेशक | उधर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था| पिक्ख शायद मराठी नहीं बोलते, क्यो ? वेसे देखा जाय तो सिकक्‍्ख और मराठों के बीच बड़े सम्मान का नाता है | हमारे संत नामदेव লিঙ্গ के गुरु-परिवार क्े हैं | है न ? तारासिह : जी हाँ, ठीक कह रहे हैं आप । वेसे में कोई बड़ा घामिक नहीं हूँ | लेकिन म॒र्क कुछ घँघली-सी याद है कि मेरे पिताजी बार- बार नामदेव का नाम लिया करते थे | जब से यह मुल्कगिरी शुरू हो गयी है; तब से हम लोगों ने घ्मे ओर ग्रन्थ सब लपेटकर अलग रख दिये हैं । अब तो एक ही बात जानते है कि हम लडके हैं, बहादुर हैं | हम कोई भी धंधा करें, फिर भी মাল হল লা और बहादुर हीं रहेंगे । शान्ताराम : हम भी थे लडाके ओर बहादुर | हमारे प्रृव॑जों ने बढ़ी तलवार खींची थीं। लेकिन अब उस्तरे का फाल भी देखते हैं तो भय से कलेजा कांप उठता हैं- इसीलिए तो आजकल सेफ्टीरेजर काम में लाते हैं। (विचित्र रीति से हँसकर) तुम अपने आपको बहादुर समते हो, इसीलिए आज तक अकडकर चलते हो-रात- दिन अपने पास किरपान रखे रहते हो | लडते मी ह्ये इधर-उधर जाकर--हम लोग तो अपने पूत्रजों की पिफ डींयें क्षा करते हैं-- (फिर हँसकर)--ऐसा লজা ই सदानंद : (तारातिंह को आँख से इशारा करता है )--आज शायद रंगून से तरहुत लोग आये हैं ?




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