कालिदास-ग्रंथमाला | Kalidas-Granthmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
1016
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ 1 * रघुवंदाम् #
प्रजानमिव भूत्यथे स ताभ्यो बलिमग्रहीत ।
सहखगुणमुत्खष्टुमादच्ते हि रसं रषिः ॥१८॥
सेना परिच्छद स्तस्यद्रयमेवाथसाधनम् ।
शास्त्रेश्वङरिटिता बुद्धिर्मोवीं धनुषि चातता ।। १६
तस्य संवृतमन्त्रस्य गूढाकारेङ्गितस्य च।
फलानुमेयाः प्रारम्भाः संस्काराः प्राक्तना इव ।२०॥
जुगोपात्मानमत्रस्तो भेजे धम॑मनातुरः ।
अगृध्नुराददे सोऽथ॑मसक्तः सुखमन्वभूत् ॥२१॥
ज्ञाने मौनं कमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः
गुणा गुणानुबन्धित्वात्तस्य सप्रसवा इव ॥२२॥
भ्रच्छे ढगसे प्रजाकौ देखभाल की कि प्रजाका कोई भी व्यक्ति मनुके बताएं हुए नियमोंसे
बहककर चल नहीं सकता था। [सब लोग वर्ण ओर ग्राश्नमोंके नियमोंके श्रनुसार ही अ्रपने
धमंका पालन करते थे] 11१७॥। जंसे सूर्य भ्रपनी किरण्पोसे पृथ्वीका जो जल सोखता है उसका
सहसगुना बरसा देता है, बंसे ही राजा दिलीप भी अपनी प्रजाकी भलाईमे लगानेके लिये ही
प्रजासे कर लेते थे ॥१८॥ [जंसे झर राजाओंके पास बडी भारी सेना होती थी बसे ही) राजा
दिलीपके पास भी बड़ी भारी सेना थी पर वह सेना केवल झोभाके लिये ही थी [उससे कोई
काम राजा दिलीप नही लेते थे 1] क्योकि शास्त्रोका उन्हे बहुत भ्रच्छा ज्ञान था भौर धनुष
चलानंमें भी वे एक ही थे। इसलिये वे श्रपता सब काम प्रपनी तीखी बुद्धि भोर धनुषपर ची
हुई डोरी-इन दो से ही निकाल लेते थे। [उन्हे किसी काममे किसो औरकी सहायता नहीं লী
पड़ती थी] ॥१६९॥| राजा दिलीप न तो अपने मनका भेद किसोकों बताते थे भोर न श्रपनी
भावभंगीसे ही अतने मनकी बात किसीकों जानने देते थे। जेसे इस जन्ममें किसीके [सुखी
या दुखी ] जीवनकों देखकर लोग समभते हैं कि उसने पिछले জন্মম क्या [श्रच्छे या बुरे] काम
किए थे वेसे ही राजा दिलीपके मनक्की बात भी लोग तभी जान पाते थे जब वह काम हो
चुकता था, [उससे पहले नहीं] ॥२०॥ वे निडर होकर अपनी रक्षा करते थे, बड़े घीरजके
साथ अपने धर्मका पालन करते थे, लोम छोड़कर घन इकट्ठा करते थे श्रोर मोह छोड़कर संसारके
सुख भोगते थे ॥२१॥ [जो लोग बहुत लिख-पढ जाते हैं वे प्रपनी विद्याका ढिढोरा पीटते हैं,
जो बलवान होते हैं वे दूसरोंकों सतानेमें भ्रपनी बड़ाई समभते हैं, जो जोग दान देते हैं या
किसीके लिये कुछ त्याग करते हैं वे चाहते हैं कि चारों शोर हमारा साम हो। पर राजा दिल्लीपमें
यह् बात नही थी | वे सब कुछ जानकर भी छुप रहते थे, शत्रुओंसे बदला लेनेकी शक्ति रहते
हुए भी उन्हे क्षमा कर देते थे और दान देकर या त्याग करके भी अपनी प्रशंसा करामेकी
इच्छा नहीं करते थे । [उनके इस जगसे न््यारे व्यवहारकों देखकर यही जान पड़ता था कि] चुप
रहने, क्षमा करने और प्रशंसासे दूर भागनेके गुण भी उनमें ज्ञान, शक्ति और त्यागके साय
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