मध्ययुगीन भारतीय समाज एवं संस्कृति | Madhyayugin Bhartiya Samaj Avam Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
765
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 : मध्यवुगीन भारतीय समाज एवं संस्कृति
बह प्रजा पर शासन करता है, उनकी रक्षा करता है। शुक्रतीति के अनुसार
জী ভীক की रक्षा करने मे दक्ष, बीर, दांत, पराक्रमी, दुष्टो का दमन करने वाला हो,
वही क्षत्रिय है।! क्षत्रियों को समाज में अनेक सुविधाएँ प्राप्त थी, किन्तु ब्राह्मणों की
तुलना में कम तथा वैश्यों की तुलना में अधिक | उन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं
थी । प्रतु यज्ञ करा सकते थे । *
वैश्य
भारतीय समाज के व्यावसायिक और कृषि कर्म का भार प्राचोन काछ से
वैश्य वर्ण के हाथों में रहा । देश और समाज की आथिक स्थिति को सुर और सुसं-
गठित बनाने का कार्य वैश्य वर्ण को सुपुर्दे किया गया।* समाज के आथिक आधार
का संचालन वेश्य करते थे। गीता का उद्धरण करते हुए अलबीरुनी ते लिखा है कि,
वैश्य का कर्म खेती करना, पशुपालन और व्यापार करना है ।4
श
+ सामाजिक आचार-विचार ओर व्यवहार कर्म में शुद्रों का स्थान चौथा था ।
अधिकार ओर कर्तव्य की दृष्टि ये यह वर्ग समाज में उपेक्षित था ।” इनका एकमात्र
कर्म समाज की सर्वविधि सेवा करना था। पधर्मशास्त्रों में बताया गया है कि ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्यो की सेवा करना उनका सामाजिक कर्तव्य है 1 वे वेद-अध्ययन, देध की
रक्षा और व्यापार नहीं कर सकते थे । अगर किसी कारणवद হার, জঙ্গি भौर वैश्य
की सेवा नही कर पाता था तो वह किसी सीमा तक क्षम्य था, परंतु ब्राह्मणो षी
मेवा उनके छिए अनिवायं था 17
समराङ्ग सुत्राधार अ. 7, उद्धुत-मिश्र, प्ृ० 113
- प्रभु, ৃৎ 295
- आर. एस त्रिपाठी, हिस्ट्री आफ सीट इण्डिया, पुऽ 74
` कृषिगौ रध्य वोणिज्यं वैष्यकमं स्वमावजम् ॥ (उष्षृत-मिश्र, पं 117)
- त्रिादी, पृ० 74
- एकमेवतु सूदस्य प्रभुः करमंसमृिशत् ।
एतेषामेव वर्णानां शुश्रपामनमूयया ॥ (मनु 1.91, मिश्र, पु० 118)
- प्रभु पृ८ 289
ॐ क + € 63 म
वि)
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