महापुरुषों की खोज में | Mahapurushon Ki Khoj Mein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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No Information available about बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रशा गाधी जी का नाम मैंने तभी से सुन
रखा था, जब उनका सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका
मे चल रहा था। उनसे कुछ पत्र-व्यवहार
भी सन् 1917 के आसपास हुआ था। तथापि
उनके दर्शन प्रथम बार सन् 1918 में ही हुए ।
सन् 1918 से लेकर जनवरी 1948 तक उनकी
कृपा मुझ पर बराबर बनी रही) सन् 1918
मेबपूने मेरी पस्तक (प्रवामी भारतवासी) पढ़
ली थी और उसकी मोटी गलतियों के बारे में
उन्होने दीनबन्धु एेण्डु.ज को लिखा भी था । महादेव
भाई की डायरी में दीनबन्धु ऐण्डू ज़ के नाम लिखा
वह पत्र उद्धृत है, यद्यपि उसमे मेरे नाम का उल्लेख
नही है। बापू का कथन सर्वथा ठीक ही था , क्योकि
प्रवासी भारतीयों के बारे मे मेरा कोई व्यक्तिगत
अनुभव नही था, फिर भी मेरा चार वर्षों का सर्वो-
तम समय (प्रवासी भारतवासी नामक पुस्तक लिखने
मे बीता । वहु पुस्तक सर्वेधा मिशनरी भावना से
लिखी गई थी और उससे एक पैसा भी मैने नहीं
कमाया । साक्षात् परिचय होने के बाद बापू ने मेरी
उस पुस्तक का उल्लेख कभी नही किया। हाँ, उन्होने
एक बार मुझसे कहा था, “तुम्हारी किताब मे
'पारत-भक्त ऐण्डू ज' ही मुझे सबसे अधिक पसन्द
]
महात्मा गांधी जी
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है ।” उस पुस्तक की भूमिका की भी अपनी एक
कहानी है ।
1920 की कलकत्ता क्रिस के बाद बापू विश्राम
करने के लिए शान्ति-निक्रेतन पधारे थे | एक दिन
प्रात काल मैंने उनकी सेवा मे पहुँचकर दस मिनट का
समय मागा, जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया। मैं पाँच
मिनट तक दीनबन्धु ऐण्डू ज्ञ की प्रशसा करता रहा।
बापू ने उसे सुनकर कहा, “ऐण्डू ज्ञ तो एक ऋषि है।”
जब मैंने कहा, “मैं उनका जीवन-चरित लिख रहा
हैं,” तब बापू ने कहा, “अवश्य लिखो ।तब मैंने तिवे-
হন किया, “उसकी भूमिका आपको लिखनी होगी ।”
बापू ने कहा, “लिख दूँगा ।” तब मैंने आग्रहपूर्वक
कहा, “शान्ति-निकेतन से जाने से पूर्व भूमिका लिख-
कर आपको देनी है।” बापू ने कहा, “मै रेल की यात्रा
में भूमिका लिख दूंगा ।” मैंने कहा, “नही बापू । लिख
कर दे ही जाइए । बापू ने मेरी जिद स्वीकार कर
ली और दूसरे दिन जब मैं उनकी सेवा में पहुँचा तो
उन्होने पेन्सिल से लिखी हुई भूमिका मुझे देते हुए
कहा, “तीन बार भूमिका लिखकर मैंने फाड दी, यह
चौथा प्रयत्न है।” मैंने अंग्रेज़ी मे ही भूमिका लिखने
के लिए कहा था क्योकि मैं अंग्रेज़ी मे भी पुस्तक
लिखना चाहता था । भूमिका निम्न प्रकार है
महात्मा गणी ली / 13
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