शिखरचन्द्र कोचरः व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Shikharchandra Kochar Vyaktitv evam kratitv

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Shikharchandra Kochar Vyaktitv evam kratitv by भगवानदास किराडू - Bhagwandas Kiradu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व बीकानेर के कोचर परिवार का संक्षिप्त परिचय एवं वंशावलि संदर्भग्रंथ : महाजनवंश मुक्तावली - युक्तिवारिधि : उपाध्याय श्री रामलालजी गणि; निर्मित (पृष्ठ 97) प्रकाशक : शिष्य क्षेमर अमरवालचंद्र; आवृत्ति - द्वितीय (सन्‌ 1924 ) एवं ओसवाल जाति का इतिहास लेखक श्री सुखसम्पतराय भण्डारी व अन्य, इन्दौर (19 अगस्त, 1934 ) कोचर वेश के मूल-पुरुष के पूर्वज पहले पूगल में रहा करते थे। वे वहाँ से संवत्‌ 1385 के चैत्र शुक्ला 1 को मंडोर आए। मंडोर में राव चूडाजी ने संवत्‌ 1446 में महीपालजी को सारे मारवाड़ का काम सौंपा और उन्हें 'मेहता' की उपाधि से सम्मानित किया। उनके प्रथम पुत्र-कोचरजी कं जन्म के समय कोचरी बोलने के कारण उनका नाम कोचरजी रखा गया। वे संवत्‌ 1457 में उत्पन्न हुए थे। उनके नाम से संवत्‌ 1515 में कोचर शाखा की उत्पत्ति हुई। उनके वंशज सीहोजी फलोदी में बस गए। उनके पुत्र उरजोजी के 8 पुत्र हुए जिनके नाम क्रमश: (1) रामसिंहजी (2) राऊजी (3) डूंगरसिंहजी (4) भाखरसिंहजी (5) पचाणसिंहजी (6) रजसिंहजी (7) रतनसिंहजी (8) भीवसिंहजी थे। वीकानेर फे महाराजा सूर्यसंहजौ, संवत्‌ 1672 के माघ यदौ 7 को उरझोजी तथा उनके चार पुत्रो, रामसिंहजी, भाखरसिंहजी, रतनसिंहजी तथा भीवसिंहजी कौ अपने साथ वीकानेर लाए ओर उन्द “लेखन का काम सुपुर्द किया। बीकानेर के सारे कोचर परिवार उन्हीं के वंशज हैं। उपझोजी के बाकी 4 पुत्र फलौदी में ही रहे। भींवसिंहजी, उरझोजी के अष्टम पुत्र थे। उनके चार पुत्र क्रमशः जैराजजी, अखेराजजी, पहराजजी एवं ताराचंदजी हुए। पहराज्जज़ी के तीन पुत्र हुए, जो क्रमश: इन्द्रसेनजी (इन्द्रभाणजी), चनद्धसेनजी, सगतसिंहजी थे। चन्द्रसेनं फ़ दो




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