गाँव | Gaon
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहने क साथ उसने एक बार सभा धी तरफ हाथ সাত दिये मोटी-माटा मृछ
होओें की मुस्कुराहट के साथ युछ और छितर गई। पायाज के साय उसक सास वी
घरघरातां ध्वनि उम्र वा आभास वरा गई।
आदर की स्गर्मे क्या यात है লাইনে, यह ता हमारा कर्तव्य है।' पाठक ने
ভুত हा कहा]
कर्तव्य निभाना ही जिन्दगा है बायूजां। मुसका हा देसा, मैंने अपनी बीस
साल की नौकर में कभा एवं लीटर डाजल-पैट्राल महा बचा) क्ष्भी किसा सवारा
को गाड़ीमे विदा क्र पाय पैसे नहीं लिये। बड़े बड़े अफ्सर्स वी गाड़ियों वी
ड्राईवरी मैंन वी है पर मजाल है, कसी से पाच रपये लक्र कसी की सिफारिश
की हो? हमेशा सत्य का पश्चधर रहा हू मैं) सत्य की परवाह और चाहे कोई न
कर, ईश्वर जरर बरता है। मैं ईश्वर की वसम सावर कहता हू, बाबृजा, मैंने
मेरा जिन्मगा में अगर क्सि का भा एक पैसा गलत साथा है, तो गौ-हत्या का
पाप लग) मैने कमा मदिर जाकर भगवान कै दर्शन नहीं किय, कमी तिलक-
खपे का आडम्यर नहीं जदा, मनम हौ पृजी दी है और वाचुजी, ईश्वर ল দয়া
सारी कामनाए पूरौ यी हैं। पाच बेटे हैं मर, पाचों अच्छा सर्विस कर रह हैं, एक
लड़की है उसकी भा शादी अच्छ-भले परिवार में हो गई है। यह सब सिर्फ
इसलिए सभा हुआ है कि मैंने सज्चाई का साथ क्भो नहीं छोड़ा। अपने कर्तव्य
पर अटल रहा हू।
आप ड्राईवर ही हैं या कोई और भी सर्विस की है ”' पाठक ने पूछा।
पहले फौज में था बावूजी।' सुल्तानसिह्ठ का जवाब पाठक वी शका वा
समाधान कर गया । पनज के अलावा कर्तव्यनिष्ठा नौर मत्य के लिण लड़ने का पाठ
भला और कहा पढ़ने का मिल्लता है?
“आपका तो वेतन भी कम मिलता होगा? आठ-नौ सौ में पूरे परिवार को
पालने मैं बडा कठिनाई हुई होगी ?' चावरिया ने सुल्तातसिह के दिपदिपाते चेहरे
और ओजपूर्ण वाणा के प्रभाव स॑ निकलत हुए आर्थिक कठिनाई की ओर ध्यान
खींचा!
कस्नाई क््यां हो? सत्य और ईमानदारा का दामन पकड़ने वाले की
म्द ईश्वर करता है। मैंने सभी काम अपन हाथों से क्यि हैं और तुम भी सुन ली
औरत को कभी पैसों का भेद मत देना। वो घर चलाती है, भेद न होने पर जुगत ম
घर चला लेगो! अगर पैस उसे सौंप दिपरे तो बस मैंने कभी अपनी जौरत को
नहीं बताया कि मुझे कितनी तनख्वाह मिलती है और कितनी बचत है! भरी
ओरत ने মী লা মহা जैवे नहां सभालों।
सत्यमेव जयतत 15
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