शेष दृश्य | Shesh Drishya

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Shesh Drishya by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पैटन के अनुप्तार बागची कोठी के वेदास्त नामक देवदूत जैसे अपरुप वालक यो सावेको कोठो वी दालान म माप कर सात साथ जमीन पर नाव रगडनी पडी थी ओर अपने दोतो वान पवड वर आधा घटा तक घुडदीड करनी पड़ी थी । किसी वे मन से उसके लिए एवं-कण भी सहानुभूति वा नहीं उपज था, वरन्‌ छोटी दीदी एंड कम्पनी पिक फिक ठेस पडी धौ 1 यह्‌ पहला मटक घा । उसो दूसया अटक हुमा तेरह साल की आयुम। इस वार की प्रेमिका उससे उमर म ण्यादा बडी नही थौ। सिफ साल भर बडी थी | वेदा के मामा वे! किरायंदारों की लडकी थी। मा- बाप मर घुवे थे। चाचा चाची पाल रहे थे । इस तरह वी एवं लावा- হিম लड़की के पालने पोसने वो बाहय होने पर कौन उसवा दाम' वसूल नही करना चाहेगा ? दुनिया अभी स्वगोपन नही हई है । लेकिन वगयी कोठी के उस देवदूत (अभी मूछे नही आई थी, इस लिए दवदूत'व वना हुआ था ।) के मन मे वह स्वर्गीय चेतना थी । इसी- लिए उस लडकी का दष्ट देखकर, उसे बतन माजते, पोछा लगाते, कपडे घोते देखकर गुस्से और दुख से यह कातर ही उठा। फिर भी उसे यह सव देखना पड रहा था । वह मामा गे वहा दो दिन धूमनं फिरन नही आया था । वाक परीक्षा के पहले उसके धर चेचक निकल आयी किसी का 1 उस सप्रामव रोग से बचने के लिए वह मामा के धर आया हुआ था । समय सीमा पार हामने पर ही वह घर वापिस जा सकता था। मगर उप्तदी किस्मत ऐसी खराब थी कि रोग समाप्त हाते बे बजाय परिवार के एक दा और वच्चा की हो गया। सलिए जा उसकी पकड के बाहर था उसे बाहर ही रहने दिया गया और मामा वा घर उसी शहर में था--जिससे परीक्षा देने मे कोइ बाधा म थी । सीधा हिसाब था, पर शेप আন




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