परमाणु-विखण्डन | Parmanu-Vikhandan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय ও
होता है। परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर न्यूट्रान का भार, प्रोटान से थोडा
अधिक प्रतीत होगा ।
विभिन्न तत्त्वो के नाभिको पर घनविद्युत् का आवेश भिन्न-भिन्न मात्रा
में रहता है, परन्तु एक तत्त्व के सारे समस्थानिक परमाणुओ पर विद्युत्
भावेश समान रहता है ! प्रत्येक तन्व के माभिक पर एक विश्वेप विद्युत्
आवेश होता है जिसकी मात्रा से हम उस तत्त्व को पहचान सकते है।
मच्ययुग मे कौमियागर तन्वो को बदलने का प्रयत कियां करते थे,
परन्तु वे उसमे असफल ही रहे । किन्तु अब हम जानते है कि एक परमाणु
को दूसरे मे परिणत करने के लिए उसके नाभिक पर आक्रमण करना
आवश्यक होता है। नाभिक तक पहुँचने मे उच्च कोटिका वल छगता है बयोकि
नाभिक के कणो को पास-पास रखने वाली शक्ति परमाणु को अक्षत रखने
वाली झक्ति से बहुत अधिक है । इसका एक उदाहरण देखे--
हीलियम एक गैस है जो हाइड्रोजन को छोड़कर सबसे हलका तत्त्व है ।
उसके परमाणु हाइड्रोजन से चार गुना भारी होते है। इस कारण उसका
परमाणु भार ४ माना गया है । इसके नाभिक मे २ प्रोटान तथा २ न्यूट्रान
सम्मिलित है। इस नाभिक के चारों ओर २ इलेक्ट्रान परित्रमा करते है।
यदि हम हीलियम परमाणु से एक इलेक्ट्रान निकालना चाहे तो हमे कुछ
ऊर्जा का उपयोग करना होगा । परन्तु यदि हम इसके नाभिक का विसण्डन
करें तो पहले प्रयोग से १० लाख गुनी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी।
परमाणुओ के नाभिको के मध्य क्रिया लाने मे व्यवहृत ऊर्जा, रासायनिक
प्रयोगो से कही अधिक होती है ।
रदरफोई तथा अन्य वैज्ञानिकों ने परमाणु का तत्त्वान्तरण' किया है,
परन्तु इस क्रिया में अत्यधिक ऊर्जा प्रयुकत करना पड़ता था। साथ ही तत्त्वा-
तरण वाले परमाणुओं की संस्या अत्यन्त अल्प थी और उनका परीक्षण भी
1, ''प्थडाशपरॉंता
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