श्रीश्रीचैतन-चरितावली (प्रथम खण्ड) | ShreeshreeChetan-Charitawali (Pratham Khand)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ 2 विराजमान हैं; जहाँ संसारी द्रव्य संग्रह करनेकी इच्छा है, भीकृष्य उस स्थानसे दूर भाग जाते हैं | उस कृपाल कृष्णने कहा--£अभी तुम्हें और साधना करनी होगी साधन करो, भर्छोका पादोदक पान करोः शरीमद्धागवतका भवण करों) भक्तोंके चरित्र सुनो; तब हुम्हें मेरी उपलब्धि हो सकेगी ।? क्या करता ? किसीको जऔी-पुत्रोंका, किसीको धनका) किसीकओो तप-बैराग्यका और किसीकों विद्याका रुद्दारा होता है। किन्तु यहाँ तो इनमेंसे कोई भी वस्तु अपने पाछ नहीं है। यदि योड़ा-बहुत कुछ सहारा कह्िये, विश्वास समझिये उसी गिरिधर गोपालका है। दूसरा कौन इत उमयश्रष्ट व्यक्तिको सद्ारा दे सकता है। उस कृपाड झृप्णने अपार कृपा की | यहाँ लाकर पटक दिया । खधु-सन्नका सुयोग भ्राप्त कराया) चैतन्य-चरित्र छिखाया। अपना सुयश सुनवाया और गजन्नामाताका नित्यप्रतिका “दरस-परस अरू मज़न पान? प्रदान किया। वे चादते तो विषयोंमं मी छाकर पठक देते, किन्तु वे दयामय बे ही कृपाल हैं। निर्यलोंकी वे खयं ही सद्दायता करते हैं) किन्तु निर्यठछ भी सदा और सरछ होना चाहिये, जिसे दूसरेका सद्वारा ही न हो, यहाँ तो इतनी सचाई और सरलता श्रतीत नहीं होती फिर मी वे अपनी असीम हा प्रदर्शित करते हैं। यह उनकी खाभाविक भक्तवत्सछ्ता ही है । इन पाँच महीनोंमें निरल्तर चेतन्य-चरित्रोंका चिन्तन होता रहा | उठवे-बैठते, सोते-जागते। नहाते-धोते, खातेपीते, भजन-ध्यान। पाठ- पूजा और जप करते सब समय चैतन्य ही साथ बने रहे । मैंने उन्हें शची- * आतंकी गोदमें बाकरूपसे देखा “और गम्भीरा मन्दिरमें रोते हुए. मी उनके दर्शन किये । प्यारे सलाकी तरह छायाकी तरह वे सदा मेरे साथ ही बने रहे। मैंने उन्हें खेलते देखा) पढ़ते देखा, पढ़ाते देखा, गया जाते देखा, आते देखा) रोते-चिछ्लाते देखा: सट्ली्तन करते देखा, भावावेश्यमे देखा; भक्तोंकी पूजा ग्रहण करते देखा उन्मादी देखा) विक्षिसावस्थामें देखा,




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