प्रतिमा नाटकम् | Pratima Natakam
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीकृष्ण ओझा - Shree Krishna Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( 13 ) |
वाला उनका प्रसाद गुण अत्यधिक सहायक हुआ है । रूपको का प्राण प्रसाद-
गुण है, यह स्वीकार करने मे कोई अतिशयोक्ति हीं है, क्योंकि ঘন বালিশ
शील होता है । जिस गति से वह चलता है, उसी गति से यदि भाषा सामा-
जिको की समझ में नही, आती तो रूपक का समस्त श्रानन्द ही समाप्त हो
जाता है । श्रतः रूपक को गतिशील बनाए रखने के लिए उसमे प्रसाद गुण की
सर्वाधिक आवश्यकता है ।
बोलचाल की भाषा--भास ने बॉलचाल की भाषा का प्रयोग किया
है । यही कारण है कि इनकी भाषा मे अनेक श्रपारिनीय प्रयोग भी सस्मि-
लित है । ये श्रात्मनेपद के स्थान पर परस्मैपद का श्रथवा इसका विपरीत
प्रयोग करते है | इसी प्रकार इन्होने श्रऊर्मक क्रियाश्रो का सकर्मक प्रयोग भी
किया है। यही नहीं, भास ने समास की प्रक्रिया मे भी कुछ नवीन प्रयोग
किए है, जो पारिषनि से भेल नही खाते । इन्होने कई नए तथा क्लिष्ट शब्दो
का प्रयोग भी किया है ।
शैली मे तीनों गुणो का समावेश --शास्त्रीय दृष्टि रे भासकी शैली में
भ्रोज, प्रसाद व माधुय इन तीनो गुणों का समावेश पाया जाता है । ये मधुर
तथा मनोरम शैली का प्रयोग वही करते है, जहा किसी व्यक्ति की कोमल
भावनाओं की श्रभिन्यक्ति करनी होती दै म्रथवा रम्य प्रकृति का वणन करना
भ्रभीष्ट होता है। यह सत्य है कि जब कल्पना को दुहहता श्रौर श्रलकारो के
बोक से भाषा की सहज माधुरी दब जाती है, तव रसोद्रकमे क्षीणता उत्पन्न
होती है। भास ने बलपुवंक श्रल कारो का उपयोग नही किया है ।
सशक्त शैली का प्रयोग--भास की वर्णुंत कला प्रौढ एवं श्रपने ढंग
की श्रनोखी है । शैली को संशक्त बनाने के लिए इन्होंने आम, वाढम् यदि,
चेतू तथा कुशल प्रश्न के लिए “सुखमार्यस्यथ/”” का प्रयोग किया है। इससे
ज्ञात होता हैं कि नाटककार दृश्यो के चित्रण मे श्रत्यन्त पटु है । इस प्रकार
के वर्शानों के श्राधार पर चित्राकन किया जा सकता है। शैली की सक्षिप्तता के
कारण छोटे-छोटे वाक्यो मे गभीर तथा रसपेशल भावो की व्यजना प्रस्तुत
की गई है ।
वान्विस्तार का परिहार--भास के पात्रों ने शैली की विभेषता के
कारण कम से कम शब्दो में श्रधिक से अधिक भावो की अ्रभिव्यजना की है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...