सांझ | Sanjh

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Sanjh by गणपति चन्द - Ganapati Chandनारायण सिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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गणपति चन्द - Ganapati Chand

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नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साभ (ड) ..____ শী শী শী শ্লশ্াি उस स्नामरता सध्या के रूप का पान वरने तरग का वेश धारण कर तैता है। तरग पवन से ही उत्तन्त होती है भ्रत इस वास्तविक आधार को पपकर उस्प्ेक्षा सार्थक हो गई है भर समूचे हृश्य को कुशल कवि ने श्टगारी भावों की जो पृष्ठभुमि प्रदान की है वह वास्तव मे मौलिक और भददभुत है। ऐसा सुन्दर दृश्याकन ही सा कै कंत्पसा वमव और मामिकता का वीत्तिस्तम्म है + प्राकृतिक पदार्थों श्लौर घटनाओं के सूक्ष्म पर्यत्रेक्षण के साथ साथ उनके पारस्परिक सबधों की सुन्दर कल्पन, भौद समूचे चित्र को एक मामिक्त मावश्रुभि प्रदान करता सम के कवि की सबसे वडी विशेषता है। कही सध्या के समय छताग्रो पर झगे पुष्पा के সুদান में कवि को माँ की वात्सल्यमथी गोद मे सिर रख कर भपकी लेते हुए शिशुझ्रो के दर्शन होते है, तो कहो सध्या के समय भी न मुर्काने वाली बेहोनी और कपास के पौधे रूपवती सध्या को देखकर प्रफुल्लित होते दिखाई देते है भौर रेतीले धोरे तो मानो हरे मखमल के पाँवडे बिछा कर सध्या--सुन्दरी का स्वागत कर रहे हैं । ५ वलूगवडी रीभी विगत रूप, बहीनी ऊभी करे वणाव । घरा चो हरियो मखबमल ढाल, धोरिया प्रगर्ट इम अपरणाव 11” (२४) बेहोनी की भाडी के गुलाबी फूल रात मे भी नही मुर्काते, इसका उल्लेख कवि के सूक्ष्म प्रकृति-पर्य वेक्षण का परिचायक है। साझा के कवि का कंनवस बडा विस्तृत है, उसने सध्या को विभिन्न रूपों में देखा है श्र उसका विभिन्न दृष्टियों से चशंन किया है, भारभ के सात आठ छदो में कवि ने सध्या को एक नायिका अ्रथवा दुलहन के रूप में चित्रित निया & । यह वर्णन प्राय श्रलइत है परन्तु अलकारो का प्रयोग सहज है, सप्रयास नही भौर साथ ही भत्येक चित्र मे छलकते भावों के सामने वे स्वथ उनके पोपक वन कर गौण स्थान घारण कर लैते हैं। एलेप से पुप्ट रुपकातिशयीक्ति का भावपूर्ण उदाहरण देखिए--- #लुबाती दिवलो अवबर ओट, निरखवा आई श्रौ सप्तार) घडकती छाती धीमी चाल , मुलुकता नैशा सुरमो सार ।” (६) इस छद मे 'अम्बर' का रिज़ष्ट श्रयोग कितिता सहज श्रौर सार्थक है जो झ चल की ष भोट मे दीपक द्रा कर किसी भपरिचित स्थान की भोर घडकते हृदय से औरे




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