भारतीय चित्रकला | Bhartiya Chitrakala

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Bhartiya Chitrakala  by विद्यासागर उपाध्याय - Vidhyasagar Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रामंतिहासिक कला 11 सिन्धु घादी की चि्रकला--ईसा से तीन हजार वं पूरे के लगभग भारत मे सिन्ध सभ्यता विद्व की प्राचौनतम सम्यताग्रो सृमेरियन, श्रसिरियन, मिध झादि की समकालीन पूणं विकसिते सभ्यता यी । चिन्धु सम्यत्ता खुदाई में दो प्रमुख केन्द्र प्राप्त हुए है जो केला की दृष्टि से पूर्ण विकसित थी। खुदाई मे कलात्मकं वर्तन, मुद्राये (मुहर) जेवरात, मिट्टी व घातु की मूर्तिया प्राप्त हुई है। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि इन वहुमजिली श्रद्टालिकाशो, विकसित नगरों आदि में चित्र- कला भी इतनी हो महत्वपूर्ण स्थान पर होगी । विन्तु दुर्भाग्य से चित्रकला में सम्ब- स्घित चन्द्र मृत्तिका पात्रो पर वमे चित्रों (रेखाकन न. 4) के अतिरिक्त सब कुछ नप्ट हो गया है। मृत्तिका पात्रो पर मानवाहृतिया, पशु-पक्षियो के प्रातैखन व ज्यामितिक रूपों को गेरू, काले व सफेद रगो मे निमित किया गया है जो तत्कालीन कला फो महत्वपूर्णं स्थान प्रदान करने में सक्षम है। हाल ही भे हुईं अन्य स्थानो कौ खुदाई से यह बात स्पष्ट हो गई है कि भारत में सिन्धु घाटी की यह सम्यता सिन्धु नदी तक ही सीमित नही थी किन्तु इसके केन्द्र (लोथर, रोपड, झाहड, पीली बगा प्रादि) मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान व विद्वार तक फैली हुई थी जिनकी खुदाई में पुरातत्व विभाग सक्रिय है । सिन्धु भाटी में विन्वकला के दर्शन हमे घरेतू बर्तनों पर क्री गई चित्रकारी मे प्राप्त होते है । धरेलू उपयोगी बर्तनों में कटोरे व लोठेनुमा गोल पैदे के पात्र प्रधिक मिले हैं, साथ ही भ्रनाज सग्रह हेतु निमित बडे-बडे मृत्तिकापात्र भी हडप्पा एवं मोहनजोदडो मे प्राप्त हुए है । इन पात्रों पर सीमित रगो से लाल रग चदा- कर सर्फद रग से सूक्म रेखाकन से अ्रदकरण कर की गई है। पान्न चिभणाशरो में ज्यामितिक भ्राकारों का सहारा लिया गया है जिसमे चृत्त, श्रिभूज श्रादि से प्राड्टी एवं खडी रेपो के जाल चुनकर प्ननकरणा तंयार क्रिये गये हैं । इसके साथ ही पात्रो पर पशु-पक्षियो, फूल-पत्तियों एव मानवाकृतियों का चित्राकन सुन्दर ढंग से सरल आकारों भे किया गया है । मानवाकृतियों एवं पशु-पक्षियों के चित्राकन में श्राकृतिया सरसे वे भ्रलकारिक बनाई गई है। मानवाकृतियो का भी प्राचीन कलाकारों ने समा- बेश किया है । एक पात्र मे एक मछसप्नारा प्रपने जाल के साथ चित्रित है जिसमे मछ- लिया कछुग्रा व पानी चित्रित हुआ है । एक पात मे चौपड कौ श्राति व कट पावो में मानवाकृतिया बनी हुई प्राप्त हुई है, दृक्ष पर बैठे पक्षी, हिरणी अपने बच्चे को दूध पिलाती हुईं । इसी धकार एक खड़ी झ्राकृति व मुर्गा श्रादि भी बने हुए है । ऐसे सुन्दर पात्र मजबूत, पतले एवं हल्के है जिनका रग भूरा, गुलाबी तथा हल्का पीला है, जिसमें तूलिका द्वारा काले सीपिया झ्थवा कत्थई रगे से चित्राकन हुआ है। इन केन्द्रों से प्राप्त सम्यता के चिन्ह एवं कलाकृतियों के प्राचीन उदाहरण देश के विविध राजकीय संग्राहयलयो में स्रहित है ।




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