दलित रंगमंच | Dalit Rangmanch

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Book Image : दलित रंगमंच  - Dalit Rangmanch

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कमलाकर गंगावने - Kamalakar Gangavane

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श्यम्बक महाजन - Shyambak Mahajan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृष्टिकोण से परिपूर्ण था । एक झोर वे अंधश्द्धा, रूढ़ियों तथा कर्मकांडो पर प्रह्मर कर रहे थे, सवर्णों के भसली स्वरूप को वतला रहे थे, तो दूसरी घोर दलित जनता को स्वाभिमान से खड़े होने का संदेश भी ই रहे थे । आम्वेडकरी जलसे? कथ्य, अभिनय, प्रस्तुतीकरण ग्रादि द्वारा पनजाने में एक नये रास्ते का ही निर्माण कर रहे थे। इन जलसो मे महाराष्ट्र के कई लोकनाद्यों भौर लोकसमीतों का अद्भुत समन्वय हुप्रा है। महाराष्ट्र के लोकनाट्य को अधिकतर परम्पराभ्रों को दलित जातियो ने ही विकसित किया है। इनमे भी कलग्री-तुर्रा तथा तमाशा के प्रकार सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त तोकनाट्यों का (गोंघिछू, जागरण, भारूड, एकत्रारी भजन) उपयोग आधुनिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए किया जाने लगा। आवेडकरी जलसो तथा पोवाडो ने दलितों मे नयी अस्मिता तथा नये एहसास को समृद्ध करने का ऐतिहासिक कार्म किया है। इस ऐतिहासिक आंदोलन के प्रथम नाटककार किसने फामू बनसोडे हैं, जिन्होने 1932 में 'हिदुधर्माचा पचरंगी तमाशा! की रचना की है, जो अपने समय में वहुचचित रहो है। इसी परम्परा में भागे चलकर सामाजिक तथा आशिक समस्याप्रों से जुड़ें हुए नादय फो प्रभिनोत करते हुए जनचेतनां की एक बड़े जबरदस्त हथियार के रूप में उपगोग में लाया गया। इसमें विशेषफर अण्णाभाऊ साठे तथा शाहीर प्रमरशेय का नाम्र सराहनीय है ॥? इसमे कोई संदेह नहीं कि सुधारवादी भादोलनों से प्रेरित प्रभावित होकर तत्कालीन युग ढे (1930-1960 तवः) सवणं नाटककारो--मामा 1. बाम्बेहकरो जसत्ते-स्वरूप भायि कार्य --रभीमृराव कर्क, प्रभिनव भ्रवतशन, गुद्नानक माकंट, डो. प्रायेकर रोट.येक्ट्प4 एए ও 2. धाधार/दलित बाड़ मय : प्रेरणा और प्रवत्ति--मेद- राव पेरठ, रराव + ¶९ 203 । # १ ५ [72% ५




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