अनुपम - बलिदान | Anupam Balidan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)রা एक
ब्रह्म मुहँत में रनिवास में चहल-पहल- हो रही थी। राजकुमारी
कौ सव सहेलियां स्तान करके पलों से सजौ हुई थालियाँ अपने कोमल
करो मे सजाकर राजमहल से लगे उद्यान के द्वार पर एकत्रित हो रही
थीं । प्रकृति मे उल्लास था । चारों ओर विभिन्न प्रकार के पक्षी अपनी
संगीत की स्वर लहरी से वातावरण में मधुरता की अमृत वर्षा कर रहे
थे। उधा का यौवन मुखरित हो रहा था। पूर्व दिशा के सुदूर छोर पर
ललित लालिमा द्वारा उपा का सौन्दयं प्रस्फुटित हो रहा था।
सूर्य की प्रथम किरण ने प्रकृति नटी की सुन्दरता का चित्र चित्रित
करना प्रारम्भ किया और बाल सूर्य की प्रथम किरण का सौन्दर्य स्वर्ग
की अप्सराओं के मुख की आभा को लज्जित करने वाला था। इसका
स्वागत उद्यान की कोमल कुसुमावलि के द्वारा हो रहा है। कलियां वधु
के अवगुण्ठन की भाति खुल-खिल रही ह । सुन्दर सुगंधित पुष्पों के द्वारा
रस रंग-रूप का वितरण हो रहा है । शीतल मन्द सुगन्ध पवन चल रही
है। भ्रमरों के भुण्ड पुप्पों तथा कलियों के रस का पान करने हेतु उधर
घूम रहे है ! मन्दिरों के स्वर्ण कलश सूर्य किरणों से चटक रहे हैं । शिशुओं
के नयन खुल रहे है । नवयौवना अंगड़ाई लेकर द्र,तगति से घूम रही हैं ।
कवियों का हृदय प्रफुल्लित है । वे अपनी काव्य साधना में तल्लीन है।
प्रात:काल का वातावरण वास्तव में आनन्ददायक है।
उद्यान के मनमोहक प्राकृतिक अनुपम सौन्दर्य को देखकर कविवर
“चन्द्र श' ने लिखा है--
देश चंचल भ्रमर कौ अथक साधना,
भौर मादके नयन की सरल भावना ।
ˆ रूप रंजित गगन प्यार वरसा रहा-- `
रूप कलियां -खिली सुनकर आराधना ।।
इस प्रातःकाल को मनोहर वेला मँ मेवाड़ की राजकमलिनी राज-
कुमारी कृष्णा अपनी सखियों के संग प्रसन्न सुद्रा में विभिन्न रंग विरंगे
है
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