संचित अनाज तथा गृहवासी नाशक जीव (परिचय एवं नियंत्रण) | Sanchit Anaj Tatha Grahwasi Naashak Jeev (Parichay Evam Niyantran)

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Sanchit Anaj Tatha Grahwasi Naashak Jeev (Parichay Evam Niyantran) by एस. एन. पाण्डेय - S. N. Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झनाज संचयन 5, में बहुत प्रधिक कमी होने पर जेव क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं जिससे उनकी भोजन की आवश्यकता भी कम हो जाती है, फलस्व॒रूय उनका यद्धिकाल बढ़ जाता है प्रौर वे भोजन की कमी के कारण मर जाते हैं। परन्तु कुछ कौड़े काफी कम ताप पर भी निर्वाह करने की क्षमता रखते है जो शीत सहनशील (0०४-1४०9) कहलाते हैं । श्रधिक तापकी दृष्टि से भ्रधिकाश कीड़े 40 मेन्‍्टोग्रेड या इससे प्रधिक ताप पर शीघ्र ही मर जाते है, केवल खपरा, बीटल, ग्रेन बोरर तथा बरूथी-एकेरस ही 447 सेन्टीग्रेड तक ताप राहन करने की क्षमता रखते हैं । ताप की सहनशीलता में विभिन्नता के कारण भण्डारण के कुछ कीट, देश के विभिन्न भागों में कही कम भौर कही भ्रधिक संस्या में पाये जाते हैं । उदाहरण के लिए खपरा बीटल उत्तरी भारत के भण्डारों मे भधिक तथा दक्षिण भारत में बहुत कम पाया जाता है । कौड़ों के श्रतावा कबक के प्रकोप तथा नमी में वृद्धि के कारण भी भण्डार का तापमान बढ़ जाता है। नमी की वृद्धि के कारण कवक तथा कीट दोनो का प्रकोप बढ़ता है जो तापमान-बृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं । कीड़ो की विभिन्न ग्रवस्थाप्रो में परिवर्धन के लिए ताप की जिस सीमा की आवश्यकता होती है उसे देहली ताप ((11८४1010 (९॥19७:०/४1०) कहते हैं । ताप कौजिप सीमा दद्धि वित्वुन नही होती है उत्ति परिवपंन देहली (५९५८०१९१ ॥णल्ञ०ात) कहते है । दात के पुन -कंलेसोश फस मेकुलेटस पर तापके प्रभावेके মনন ম ज्ञात हुआ दै कि इसका परिवर्धन देहलौ 15° से 20° सेन्टौप्रोडके बीच है] तापकौ भ्रतुतरूनतम सोमा 20° से 30° हेन्टीग्रे ड है । 20° सेन्दीग्रेड पर परि- वर्घत काल सबसे ग्रधिक लम्बा 53 दिन का तथा 35० सेन्टोग्रड पर्‌ सवसरे छोटा 18 दिन का पाया गया । नियत सीमा से अधिक ताप मे बुद्धि पर भी परिवर्धनकाल में बृद्धि पाई गई तथा 38० सेस्टीग्रेंड पर जीवन चक्र 25-28 दिन मे पूरा हुप्ना (मुकर्जी तथा चावला, 1964) 1 (ब) नमो--संचयन के दौरान श्रनाज को क्षति पहुंचाने वति कीटो की उपापचयी क्रिपराप्नो के लिए ग्रावश्यक नमी अनाज से ही प्राप्त होती है। ऐसा पाया भया है कि कीडों की बृद्धि के लिए अनाज में 14 प्रतिशत नमी अनुकूलतम (०7७४- गाधाए) होती है। इससे झधिक नमी होने पर झनाज में जेव-रसायनिक क्ियाएँ बढ़ जादी हैं, परिणामस्वरूप वह श्रंकुरित हो जाता हैं तथा उसमे से बदबू भी श्राने लगती है 1 अ्रनाज में नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से कम होने पर साधारणतया उसमे कीटो का विकास सम्भव नहीं होता । लेकिन कुछ कीट जंसे--द्रोगोडर्मा प्रेनेरिश्रा, ट्राइबोलियम बौस्टेनियम तथा कंलेसोत्र कस एनेलिस आदि ऐसे भी हैं जो 1 प्रतिशत लमी पर भी झपना जीवन निर्वाह कर सकते है ।




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