प्राकृत-चन्द्रिका | Prakrat-Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथमः भ्रकाशः ११
उयाकुछ ] ॥ हुक । इुअं [नहतम्] ॥ माटक । माउअ । [>सझदुकम् ]।। बाहुक्तो ।
चाहुओ | ज्व्याह्॒तः] ॥ थियण » थीण । [ स्थानम् ] | देच्चं । देव । दृइवं ।
[ = दैवम् ] ४ सुक्को । मूओ [> सूकः] ।। कोउददल्त | জীব [ »कुतहलम ] ॥
खण्णू । खाणू । [ = स्थाणुः ] + सुण्ठिको । तुण्दिओो । [ » तृष्णीकम् | ॥
अम्हक्केर । अम्हकेर । [ज्ञस्मदीयम ]॥
शषसां लुप्तयवरां प्राग्दी्ः स्थात् त्सच्छूयोरुतः १॥३४॥
शबसामिति । प्राकृतलछक्षणवश्माल्छुधा शवर येषां शतां वेभ्यः पूवंस्वावो
दीघ. । पक्ष्यति = पसह । कश्चप = कालवो । अश्रःन्भासो । विश्वास =
वीखाक्षो ॥ बिभामः-वौखामो ।। मिश्रम् =मीस ।॥ षए--हिष्यः-सीसो ॥ मनुष्यः
मणूसों ॥। विध्चाण-«वीसाणो ।। विष्वक्र = योस । कषक. = कालभ ।। वषा =
वासा ॥ प-शस्यम् = सासं । कस्यचिन् = कासह् ।) विकस्वरः = विकाक्षरो )
निश्च = णीसो ।। नि सह = णीसहो ॥
व्शछूति । व्सशब्दे छुशब्देषि लोपाबशिष्टे परे उतो दीघ. । डस्सव ७ऊल्ओ ॥
उत्सिक्त: ० ऊसितो ॥ डच्छुसति ७» ऊससइ | [ उच्छाख, » ] ऊप्तासो ॥
तारुष्ये रोध स्थितानामेव रोपे नं दीषंता ॥
तेनेह न । आद्शक = जाअरसिओ ॥ १।।६४॥
इति स।मान्यविभि-प्रकाद् 01
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