सुनीता | Sunita
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.39 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुनीता कहीं भी नहीं है । दहम-वह साथ रहे हैं । मैं नहीं कहती ब्याह करनी स्वर्ग पाना है लेकिन मैं कहता हूँ कि जिसने विवाह जाना ही नेही डर. स्रीको झेला ही नहीं वदद साधु नहीं बन सकता । सुझे आश्चर्य है कि तुम दृरिप्रसन्नके विषयमें अब तक इतनी उपेक्षा किंस तरह रख सकी हो तुमको मालूम होना चाहिए कि तुम्हारी ही राहसे मैं उसे दुनियामं लानेकी सोचता हूँ । तुम क्या यह जानती हो कि वह अकेला दी घूम रददा है? अकेला ही कर्म कर रहा है छेकिन अकेले कुछ नहीं होता । अकेले मात्र भटका जाता है । और वह ऐसा आदमी भी नहीं है कि अपने जारसे वह अपने छिए मूर्ति बना ले और उसके सह्दीरे अपना अकेलापन सर्वथा नष्ट कर ले । वह भक्त नहीं है । सुनीतांने हँसकर कहा अच्छा अच्छा । अच्छा अच्छा नहीं दृरिप्रसन्न इतना नजदीक है तो उसे खोना नहीं होगा | वह मिलना ही चाहिए और उसे पाकर नकेल पकढ्कर उसे सीधी राह भी लगाना होगा । मैं तुम्हें और भी अपनी बात बतलारऊँ--उसके भटकते रहनेसे अपने बारेमें मेरा विश्वास शिथिल होता है । दृरिप्रसन्नकी याद घुण्डीदार प्रश्नवाचक-सी बनी मेरे इस जीवनके आंगे खड़ी हो जाती है । मानो पूछती है तुम यह श्रीकान्त तुम यह जब कि तुर्ग्द्दी देखो मैं कया हूँ । मुझे अपने तमाम जीवनकी ओर हरिप्रसन्नकी याद संदेहसे संकेत करती दीख पढती है । मानों कुछ भीतरसे अधघिरा-सा उठकर तर्जनीकी नोक मेरे सामने करके पूछता रहता है--- ओ श्रीकान्त यही मार्ग है? यहदी जीवन दै ? इस सबसे मैं बच नहीं सकता । बचनेके लिए ही मैं कहता हूँ दरिप्रसन्नको पाना होगा और पाकर इस विस्मयबाधकको मिटाकर वहाँ जीवनके आगे निश्चयवाचक विराम-चिह्न ले आना होगा । मुझे देखना होगा कि हमारी सुनिश्चित और सुप्रतिष्ठित जीवन-नीतिको इस व्यक्तिकी याद विचछित नहीं करती । मैं परमार्थका कायल नहीं हूँ। कोई दृरिप्रसन्नकी बढ़ी कल्याण-कामनाके हेतु उसका. हितू बनना चाहता हूँ या उसका उद्धार करना चाहता हूँ एसी बात नहीं है । मुझे तो मेरा अपना हित ही इसमें दीखता है । जब जब उसकी याद सिर उठाती है मुझे अपनी तरफ दाका होती है अपने औचित्यपर सन्देह होता है। . . ऐसे मौर्कॉपर सुनीता अनायास ऊँची हो पड़ती है। उसने कहा लौटकर तुम मैं कहती तो हूँ उसकी तलाश करने जाना। नाइक पहलेसे फिक्र क्या होगा श्रीकान्तन कहना चाह्दा कि सुनीताके लिए इस तरह बातको समझना ठीक नहीं है लेकिन सुनीताने चर्चा इधर उधर कर दी और उसका ध्यान बेटा दिया 1०
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