चतुर्वेद | Chaturved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
बंठ कर उनकी इम्तजारी. करना मुनासिब है; लेकिन. दाता
किए लौट कर नहीं आये | अब में दो सो पश्चास रुपयेका
मालिक बन बठा। में थोड़ी देरके बाद वहाँसे उठ कर इसी
स्त्रीके पास आया और कदा,--' में तुझे एक सो रुपये दूगा
तू अपनी कन्याके साथ मेर। विवाह कर दै “|
इसपर उसको सासने पहलेकी तरह चिढला कर कहा,---
“यह बूढ़ा कूठ बोलता है | तू पहले केवल पश्चास रुपये देना
चाहता था | मेंने बड़े कष्ट ले तुमसे रुपये वसूल किये थे » ।
मोपेने विरक्त होकर कहा,--“तू अपने अपमानकोी बातों
को क्यों प्रकर कर रही?
उस रुत्रीनें कहा ;--“महाशय | आप यह क्यो भूल रहे हैं,
कि में एक विधवा हूं ? क्या में प्रति सप्ताह वुछ के नामपर दों
आना दान नहं करती ! यह सङ कासे आयगा ? ^“
“(फिर कुछ बोलनेपर जुर्माना होगाः मौपेने यह सुचना
देकर अपराधीकों थोड़ेमें अपना वक्तव्य समाप्त करने को कहा।
वह कहने लगा,--'मैंने इसकों सो रुपये सथा इसकी
कन्याकों एक सोसेका कंकण दिया। इसके तीन दिन बाद
हमलोगों का विवा हो गया ° |
यहाँपर मोपेने पूछा,--“ तो कया बह तुभ प्यार करती
थी.
अपराधी इसका उत्तर देना ही चाहता था, कि उसे गेक
कर उसकी विधवा खासने कहा,-- ' रूपये के द्वारा इसने मे टी
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